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________________ 578... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन से प्रक्षाल करते थे। फिर अंगलूंछन से पानी को सोंख, नैवेद्यादि पूजा और आठ स्तुति से देववंदन किया जाता था। उसके अनन्तर लघु स्नात्र पढ़ाकर आरती करते थे। उन्नीसवीं शती में रचित स्नात्र विधियों में स्नात्र का अभिषेक होने के पश्चात प्रतिमाओं का प्रक्षालन और उनकी चंदन पूजा करते हैं। फिर चैत्यवन्दन करने के पश्चात लघु स्नात्र पढ़ाकर नैवेद्य चढ़ाते हैं और पुन: दूसरी बार देववन्दन करते हैं। __इसके उपरान्त अन्य साधारण परिवर्तन भी हुए हैं किन्तु खर्च की दृष्टि से इसमें अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है। समाहार रूप में कहा जा सकता है कि विक्रम संवत् 1887 के पश्चात आज तक के लगभग 200 वर्षों में कितने ही परिवर्तन हए हैं। जैसे ग्रहदिक्पाल-अष्टमंगल के पट्टों के ऊपर रुपया-पैसा चढ़ाने की परिपाटी शुरू हुई। अष्टोत्तरी स्नात्र के लिए अट्ठाई उत्सव अनिवार्य हो गया। यहाँ प्रस्तुत प्रसंग में यह प्रश्न होना स्वाभाविक है कि पिछले 100 वर्षों के अन्तर्गत प्रतिष्ठा विधियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन क्यों हुए और वह भी प्रतिष्ठा उपयोगी सामग्री के सन्दर्भ में ही क्यों? __ इतिहासवेत्ताओं ने इसका समाधान करते हुए कहा है कि 19वीं शती का अन्तिम चरण और 20वीं शती का पूर्वार्ध इन 75 वर्षों में परिग्रहधारी और शिथिलाचारी श्रीपूज्यों और यतियों का प्राबल्य था। इस समय के दौरान प्रतिष्ठा, पूजा, उद्यापन आदि किसी भी मंगलकारी धार्मिक अनुष्ठानों को सम्पन्न करने हेतु विधिकारक के रूप में श्री पूज्यों अथवा उनके आज्ञाकारी यतियों की प्रधानता थी। उनके द्वारा ही सामग्री की सूचियाँ लिखी जाती थीं और उन सामग्रियों का उपयोग भी उनकी इच्छानुसार होता था। कई औषधि उपयोगी सामान श्रीपूज्यों के उपाश्रय में पहुँच जाता था और रुपया आदि के विषय में भी बहुत गोलमाल होता था। ऐसे हेराफेरी के समय में सामग्री विषयक कई परिवर्तन हुए। सामग्री की सूची लिखने वालों ने वस्त्र, मेवा, फल, मिष्ठान और रोकड़ द्रव्य विषयक संख्या में यथेच्छा बढ़ोतरी की। यह परिवर्तित सामग्री सूची अर्वाचीन विधि पुस्तकों में प्रविष्ट हुई और उन पुस्तकों के आधार पर ही विधि-विधान करवाने की परिपाटी विकसित हुई। बीसवीं सदी से आज इक्कीसवीं सदी में प्रवर्त्तमान विधि-पुस्तकों
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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