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________________ 570... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन उल्लेखनीय है कि फाल्गुन चातुर्मास से कार्तिक पूर्णिमा तक आठ महीना बादाम के सिवाय सूखा मेवा अकल्प्य है। उसमें भी आषाढ़ चातुर्मास से कार्तिक पूर्णिमा तक उसी दिन के फोड़े हुए बादाम ही कल्प्य होते हैं। इस नियम के अनुसार फाल्गुन से कार्तिक पूर्णिमा तक होने वाले पूजनों आदि में सूखा मेवा नहीं चढ़ाना चाहिए, परन्तु आधुनिक विधिकारक इन दिनों में भी सूखा मेवा चढ़ाने का आग्रह रखते हैं। आजकल कुछ विधिकारक ऐसे भी देखे जाते हैं जिन्हें न मन्त्रोच्चार की शुद्धि का ध्यान है और न ही उन्हें पूजन-अनुष्ठानों का मार्मिक बोध। फिर भी ध्वनिवर्धक लाउडस्पीकर में मन्त्रोच्चार करते हुए गतानुगतिक विधि से पूजादि अनुष्ठान सम्पन्न करते हैं और स्वयं को उस कोटि का मानते हैं कि शुद्ध मन्त्रोच्चार पूर्वक अनुष्ठान तो हम ही करवाते हैं। इस रीति से करवायी जाने वाली महा पूजाएँ कितनी फलदायी हो सकती है, यह तो सर्वज्ञ पुरुष अथवा बहुश्रुतज्ञानी गुरु भगवन्त ही जान सकते हैं। नैवेद्य- निर्वाण कलिका से परवर्ती प्रतिष्ठा कल्पों में जैसे कालक्रम से अनेकविध सामग्रियों की अभिवृद्धि हुई, उसी प्रकार नैवेद्य रूप में मिष्ठान्नों की भी मन मुताबिक बढ़ोतरी होती रही । निर्वाण कलिका में पक्वान्न के रूप में 1. दूध 2. गुडपिंड (शक्कर के पुडले) 3. कृसरा (खिचड़ी) 4. दध्योदन ( दही का करवा) 5.सुकुमारिका (मीठा खाजा) 6. शाल्योदन (छिलका युक्त चावल) और 7. सिद्धपिण्डक (घी में तले हुए मुंठिया)- ये सात नाम आते हैं और ये नैवेद्य भी नन्द्यावर्त्त पूजन के समय पट्टे के आगे रखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त जिन प्रतिमा के सम्मुख अथवा पट्ट आदि के ऊपर कहीं भी फल, नैवेद्यादि चढ़ाने का उल्लेख नहीं हैं। परन्तु निर्वाण कलिका के परवर्ती प्रत्येक प्रतिष्ठाकल्पों में नन्द्यावर्त्त पट्ट के समक्ष विविध नैवेद्य चढ़ाने के उपरान्त जिन प्रतिमाओं के आगे पच्चीस साकरिया मोदक, जिसे . प्राचीन काल में मोरींडा कहा जाता था उन मोदकों को चढ़ाने की परिपाटी का प्रवर्तन देखा जाता है। इसके सिवाय नवग्रहों और दशदिक्पालों का पूजन करने हेतु चूरमे के लड्डू, तिल के लड्डू, उड़द के लड्डू, मूंग की दाल धाणी ( सैके हुए अनाज के दाने ), मुरमुरा, घिसी दाल आदि के लड्डू तथा इसी तरह के अन्य विविध पक्वान्न निर्मित करवाये जाते हैं। उनके तैयार होने के पश्चात ही दश-दिक्पालों
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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