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________________ 560... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन तीसरा विधिमार्गप्रपागत प्रतिष्ठा कल्प दूसरे नं. के प्रतिष्ठा कल्प के आधार पर रचा गया सिद्ध होता है क्योंकि दोनों रचनाकारों की प्रतिष्ठा विषयक मान्यताएँ समान हैं। उनमें क्वचित अन्तर का मुख्य कारण समय और कर्ता की भिन्नता ही हो सकता है। आचारदिनकर नामक चौथे प्रतिष्ठा कल्प के सम्बन्ध में रचनाकार आचार्य वर्धमानसूरि स्वयं बताते हैं कि प्रतिष्ठा विधिरादिष्टः, पूर्वं श्रीचन्द्रसूरिभिः । संक्षिप्तो विस्तरेणाय, मागमार्थाद्वितन्यते ।। प्रतिष्ठाकारयितुगृहे प्रथमं शान्तिकं पौष्टिकं कुर्यात् । अतश्च श्री चन्द्रसूरि प्रणीता प्रतिष्ठा युक्तिः महाप्रतिष्ठा कल्पापेक्षया लघु- तरेति ज्ञायते। ततः आर्यनन्दिक्षपक-चन्द्रनन्दि- इन्द्रनन्दि- श्री वज्रस्वामि प्रोक्त प्रतिष्ठा कल्प दर्शनात् सविस्तरा लिख्यते। श्रीचन्द्रसूरि ने प्रतिष्ठा विधि संक्षेप में कही है। यह प्रतिष्ठा विधि आगम के अनुसार विस्तृत रची जा रही है। इसका मुख्य प्रयोजन यह है कि गृहस्थ के घर पर प्रतिष्ठा करने से पूर्व प्रतिष्ठाकर्ता को शांतिक और पौष्टिक कर्म करना चाहिए, परन्तु श्रीचन्द्रसूरि रचित प्रतिष्ठा पद्धति महाप्रतिष्ठा कल्पों की अपेक्षा अत्यन्त लघु है इसीलिए आर्य नन्दिक्षपक, चन्द्रनन्दि, इन्द्रनन्दि और वज्रस्वामी कथित प्रतिष्ठा कल्पों का अवलोकन कर विस्तार से प्रतिष्ठा पद्धति लिखी जा रही है। उपर्युक्त पाठ में आचार्य वर्धमानसूरि ने आर्यनन्दिक्षपक और चन्द्रनन्दि आदि के नामों का उल्लेख किया है। आर्यनन्दिक्षपक और चन्द्रनन्दी के नाम श्वेताम्बर परम्परा में नहीं हैं। ये दिगम्बर भट्टारकों के नाम प्रतीत होते हैं। यद्यपि दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में 'इन्द्रनन्दी' नाम प्राप्त होता है परन्तु श्वेताम्बर ‘इन्द्रनन्दी' आचार्य वर्धमानसूरि से परवर्ती हैं इसलिए प्रतिष्ठा कल्पकार के रूप में दिगम्बर इन्द्रनन्दी होना अधिक संभव है। __ श्री वज्रस्वामी श्वेताम्बर संघ में एक महान प्रभावक आचार्य हुए हैं। फिर भी तत्सम्बन्धी प्रतिष्ठाकल्प के विषय में स्पष्ट जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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