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________________ प्रतिष्ठा विधानों के अभिप्राय एवं रहस्य ...545 चावल अखंडता का भी प्रतीक है, अत: देवों को अर्पण करते हुए प्रतिष्ठा को अखण्डित रखने की प्रार्थना की जाती है। ___ गेहूँ- यह मधुर, स्निग्ध, पौष्टिक तथा ऊर्जावर्धक है एवं दुर्बलता आदि में लाभ पहुंचाता है। मँग- यह धान्य शीतल, स्वादिष्ट, नेत्र हितकारी, ज्वर नाशक, कंठरोग निवारक और मस्तक आदि के रोगों में लाभ देता है। इससे बल एवं रक्त में वृद्धि होती है। वाल (सेम)- यह भारत में सर्वत्र उपलब्ध होने वाला विषनाशक, बिच्छू जहर संहारक एवं कंठ की मधुरता बढ़ाने वाला धान्य है। - चना- द्विदल में चना एक मुख्य धान्य है। यह रक्त दोष, खुजली, दुर्गन्ध, बुखार आदि रोगों में लाभकारी है। चवला (राजमाष)- यह धान्य वायुहर्ता, श्रमहारक, पौष्टिक, सौन्दर्यवर्धक तथा मंदाग्नि, सूजन, अरुचि आदि में हितकारी है। प्रतिष्ठादि शुभ कार्यों के अवसर पर उपर्युक्त धान्यों का अर्पण करने से तथाविध गुणों का आंशिक फल सकल संघ को भी हासिल होता है। इससे निम्न कोटि के देवगण भी सन्तुष्ट होकर जिनधर्म के प्रति श्रद्धावान बनते हैं और देवगति को सफल करते हैं। प्रतिष्ठा विधि के आधार पर यहाँ शंका होती है कि शास्त्रोक्त विधिपूर्वक प्रतिमा की प्रतिष्ठा करने के अवसर पर विघ्नशांति के लिए बलि आदि का अर्पण करना सर्वथा अनुचित है, क्योंकि प्रतिष्ठा के समय भावशुद्धि के द्वारा भी विघ्नों की शांति हो सकती है। इसलिए विघ्नशांति के लिए बलि अर्पण करना जरूरी नहीं है। इसका समाधान करते हए आचार्य हरिभद्रसरि कहते हैं कि प्रतिष्ठा दो प्रकार की होती है- 1. आभ्यन्तर प्रतिष्ठा और 2. बाह्य प्रतिष्ठा। अरिहंत प्रभु की अपेक्षा आत्मा में आत्मस्वरूप की स्थापना करना आभ्यन्तर प्रतिष्ठा है। ___ यहाँ भावशद्धि की प्रधानता से विघ्नों का नाश हो जाता है परन्तु प्रतिमागत प्रतिष्ठा में स्थापना सत्य होने से वीतरागता का उपचार करने में आता है इसलिए क्षेत्रदेवता की शान्ति के लिए और विघ्न का नाश करने के लिए बलि अर्पण जरूरी है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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