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________________ 540... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन देवता प्रसन्न होते हैं और परिणामस्वरूप दिशा रक्षक देवता विभिन्न दिशाओं से होने वाले विघ्नों का नाश करते हैं। यह चुटकी अंगूठे से तर्जनी अंगुली को उठाकर बजाई जाती है। मन्त्रराजरहस्य के अनुसार स्वरों के उद्घोष के साथ चुटकी बजाना चाहिए। दिगबंधन एवं कवच निर्माण क्यों किया जाता है? प्रत्येक लक्षणयुक्त एवं गुणयुक्त पदार्थ के कोई न कोई अधिष्ठायक देव होते हैं। मंगलकार्यों में अल्प सत्त्व वाले मिथ्यादृष्टि देव विघ्न उपस्थित कर सकते हैं। अत: दिग्बंधन के द्वारा निर्धारित क्षेत्र में अल्प सामर्थ्य वाले दुष्ट देवों का प्रवेश नहीं होता तथा कवच निर्माण के द्वारा दुष्ट शक्तियों एवं नकारात्मक ऊर्जा से स्वयं की रक्षा की जाती है। प्रतिष्ठा के पश्चात लवणोत्तारण का अभिप्राय क्या है? एक कटोरी में नमक और राई डालकर उसे ऊपर से नीचे की ओर उतारने की क्रिया लवणोत्तारण कहलाती है। जैन परम्परा में यह क्रिया स्नात्र पूजा एवं प्रतिष्ठा आदि मंगलकारी महोत्सवों के पश्चात जिनबिम्बों के सम्मुख की जाती है। लोक व्यवहार में यह रस्म नव परिणीत वर-वधू के समक्ष करते हैं। नव प्रतिष्ठित जिनबिम्ब के मुखमण्डल की ओजस्विता एवं प्रभावकता अलौकिक होती है क्योंकि मंत्राक्षरों द्वारा अधिवासित होने से मूर्ति में विशिष्ट सौन्दर्य एवं शक्तियों का संचार हो जाता है। इसी के साथ प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात जिन प्रतिमा में सजीवत्त्व की कल्पना भी की जाती है। ऐसी स्थिति में नजर लगने की पूर्ण संभावना रहती है। अत: नेकाचार का पालन करते हुए नव प्रतिष्ठित जिनबिम्बों को बुरी नजर से बचाने हेतु एवं उनकी तेजस्विता को अक्षुण्ण रखने हेतु यह क्रिया की जाती है। प्रतिष्ठाजन विधानों में असंयमी देवों का आह्वान और पूजन क्यों? पूर्वाचार्यों का ऐसा मन्तव्य है कि महामंगलकारी अनुष्ठानों में देवीदेवताओं को आमन्त्रित करने से सभी प्रकार के विघ्नों एवं भयों का निवारण हो जाता है। देवता जन्मत: अवधिज्ञानी होते हैं अतएव ज्ञानबल से उन आराधकों के उपद्रव निवारण में सहयोगी बनते हैं। दूसरा उल्लेखनीय तथ्य यह है कि देवताओं को शक्तिपूर्ण बीजाक्षर मन्त्रों के द्वारा आमन्त्रण दिया जाता है जो तुरन्त असरकारक होता है। व्यवहार जगत
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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