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________________ प्रतिष्ठा विधानों के अभिप्राय एवं रहस्य ...529 नूतन बिम्बों के समक्ष स्वर्ण पात्र में ही अर्घ्य का अर्पण क्यों? प्रतिष्ठा एक उत्कृष्ट विधान है और तीर्थंकर प्रभु इस दुनिया में सर्वोत्तम हैं अतएव उत्तम पुरुष की पूजा का पात्र भी उत्तम होना जरूरी है। इसी दृष्टि से स्वर्ण पात्र में अर्घ्य चढ़ाते हैं। नूतन बिम्बों का सर्वाङ्ग लेपन क्यों? ___यह विधान सभी प्रतिमाओं में पूज्यत्व भावों का आरोपण एवं अशुद्धि का परिमार्जन करने के उद्देश्य से किया जाता है। चल और अचल प्रतिष्ठा का तात्पर्य क्या है? चल अर्थात गतिमान या अस्थिर और अचल का अर्थ है स्थिर। जिन प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा के बाद भी स्थान आदि परिवर्तित किया जा सके वे चल प्रतिष्ठित होती हैं तथा जो एक स्थान पर निश्चल स्थापित रहती है उनकी अचल प्रतिष्ठा होती है। सामान्यत: गृह मंदिरों में चल प्रतिष्ठा होती है। स्नात्र योग्य पंचधातु की प्रतिमाएँ चल होती हैं पाषाण की प्रतिमा अचल होती है। चल बिम्ब की ईत्वर प्रतिष्ठा होती है और अचल बिम्ब की प्रायः यावत्कथिक की जाती है। नूतन बिम्बों के दोनों हाथों में मदनफल और मरडासिंगी क्यों बांधते हैं? उक्त दोनों औषधियों का शरीर एवं मन पर अद्भुत प्रभाव पड़ता है। प्रतिमा के हाथों में इन्हें सौभाग्यवर्धन हेतु बांधा जाता है। इन्हें बांधकर जिनबिम्ब के अक्षुण्ण प्रभावकता की भावना की जाती है। जिनबिम्बों को अखण्ड लाल वस्त्र से आच्छादित करने का प्रयोजन क्या है? . प्रतिष्ठा सम्बन्धी कुछ आवश्यक क्रियाएँ पूर्ण होने के पश्चात नूतन बिम्बों को लाल वस्त्र ओढ़ाते हैं। यह विधि जिनबिम्बों के रक्षण, गुण स्थिरीकरण एवं सौभाग्य वर्धन के उद्देश्य से करते हैं। व्यवहार जगत में लाल वर्ण आकर्षण एवं सौभाग्य का सूचक माना गया है। अंजनशलाका की विधि सम्पन्न करने से पूर्व नूतन बिम्बों के आगे घृतपात्र क्यों रखते हैं? घृत आयु वृद्धिकर माना गया है। उसे बिम्ब के आगे रखने का तात्पर्य
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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