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________________ 518... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन 161. अभ्रक- अबरख 172. शृंगाटक- सिंघोडा 162. वाताम- बदाम 173. रोध्र 163. दांति 174. कांपिल्ल 164. कारवेल्ल 175. हंसपदी 165. कौशी 176. कर मंद 166. मुंडी- मुंडापाती बूंटी । 177. घूनीरा- एक जाति का घास 167. महामंडी- एक किस्म की बूंटी 178. छुनीरा 168. प्रपुनाट- चक्रमर्द 179. सेसकी 169. बोल- हीलाबोल __180. चो। 170. सिंदूर- प्रसिद्ध नाम 171. शंखप्रस्तरी- शंखजीरू ऊपर वर्णित क्रयाणकों की सामग्री गुजरात और मारवाड़ प्रान्त में सुलभता से उपलब्ध हो जाती है। यदि कोई क्रयाणक वस्तु प्राप्त न हो तो उसके स्थान पर दूसरा क्रयाणक भी खरीद सकते हैं, बशर्ते उसमें क्रयाणक का लक्षण घटित होना चाहिए। शास्त्रों में क्रयाणक का निम्न लक्षण बताया गया है अप्रसिद्धं रोगहरं, भेषजं यन्महीतले । तत्क्रयाणकमुद्दिष्टं, शेषं वस्तु प्रकीर्तितम् ।। उपर्युक्त सूची के अतिरिक्त जो पदार्थ अप्रसिद्ध होने पर भी रोगनाशक औषधि के रूप में उपयोगी हों उन्हें क्रयाणक में परिगणित कर लेना चाहिए और जिसमें क्रयाणक का उक्त लक्षण घटित न हो उन्हें सामान्य वस्तु के रूप में गिनना चाहिए। पंसारी की दुकान पर मिलती सभी वनस्पतियाँ और मृद्दद्दारसींग आदि खनिज द्रव्यों को भी क्रयाणक में गिनना चाहिए। मन्त्र न्यास का प्रासंगिक स्वरूप भारतीय संस्कृति की अध्यात्म मूलक प्रवृत्तियों जैसे प्रतिष्ठा, दीक्षा, महापूजन, जाप आदि के अवसर पर अनुष्ठानकर्ता और आयोजक के शारीरिक अंगों पर मन्त्रों का न्यास किया जाता है। न्यास का अर्थ है स्थापना करना। किसी मन्त्र या देवता (इष्ट) विशेष का इस पिण्ड रूप शरीर पर बाह्य एवं आभ्यन्तर रूप से स्थापन करना न्यास कहलाता है। लगभग सभी धर्मों में न्यास की यह प्रक्रिया किसी न किसी रूप में
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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