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________________ 496... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन शिलाओं की स्थापना कब करें? - खनन के पश्चात जब मंदिर की नींव रखने का समय उपस्थित होता है उस समय नींव भराई के रूप में सर्वप्रथम पाँच या नौ शिलाएँ स्थापित करते हैं। यह कार्य शुभ समय में करने से श्रेष्ठ फलदायी होता है। शिलाएँ कैसी हो ? - कल्याणकलिका में स्थापना योग्य शिलाओं का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यदि पाषाण का मंदिर बनाना हो तो शिलाएँ पाषाण की होनी चाहिए और ईंट का बनवाना हो तो अच्छी पकी हुई लाल ईंटों की स्थापना करनी चाहिए । शिलाएँ उत्तम कोटि की एवं अखंड होनी चाहिए । प्रत्येक शिला पर उसके संकेत चिह्न बनाए जाते हैं । कूर्म शिला को नौ भागों में बाँटकर उस पर पूर्वादि दिशाओं के क्रम से पानी की लहर, मछली, मेंढ़क, मगर, कछुआ, भोजन का ग्रास, पूर्ण कुंभ, सर्प और शंख के चित्र अंकित करते हैं। शेष शिलाओं पर दिक्पालों के क्रमानुसार उनके शस्त्र वज्र, शक्ति, दण्ड, तलवार, नागपाश, ध्वजा, गदा और त्रिशूल - इन्हें चिह्नित करते हैं। कूर्मशिला पर शस्त्र के रूप में विष्णु का चक्र बनाते हैं । कूर्म शिला संभव हो तो सोने या चाँदी की बनवानी चाहिए अथवा उस शिला पर स्वर्ण या रजत का कूर्म बनवाकर स्थापित करना चाहिए। 17 शिलाएँ कितनी हो ? - वास्तुसार प्रकरण, देवशिल्प, क्षीरार्णव आदि ग्रन्थों के अनुसार नौ शिलाएँ स्थापित करनी चाहिए। उनके नाम हैं- नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता, अजिता, अपराजिता, शुक्ला, सौभागिनी और धरणी । अपराजित मत (पृ. 18) के अनुसार नौ शिलाओं के नाम इस प्रकार हैं- नन्दा, भद्रा, जया, पूर्णा, विजया, मंगला, अजिता, अपराजिता और धरणी । कल्याणकलिका में पाँच शिलाओं का उल्लेख है। शिलाओं की स्थापना कहाँ हो ? - जिस वास्तु भूमि को खनन के द्वारा शल्य आदि से रहित किया जा चुका है और एक हाथ गहरा एवं समचौरस नौ गड्ढे जितना भाग छोड़कर शेष जगह को भर दिया गया है वहाँ शिला स्थापना करनी चाहिए। खनन के पश्चात मन्दिर निर्माण के लिए प्रथम नींव (पत्थर) रखना शिला स्थापना कहलाता है। शिला स्थापना के समय चार दिशाओं, चार विदिशाओं और एक अधोदिशा (मध्य भाग) में ऐसी नौ शिलाएँ रखी जाती है। मध्य शिला के ऊपर ढक्कन के रूप में 10वीं शिला भी रखते हैं जिसे ऊर्ध्व दिशा की शिला कह सकते हैं। इस प्रकार दस दिशाओं के प्रतीकार्थ दस
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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