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________________ 476... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन जवारारोपण विधि का प्राकृतिक स्वरूप मिट्टी के सकोरों में जौ आदि सप्त धान्यों का वपन करना जवारारोपण कहलाता है। प्रतिष्ठा प्रसंग की शुभता - अशुभता एवं जघन्योत्कृष्टता का संकेत पाने हेतु यह विधि की जाती है। इसी के साथ जिस तरह वपन किया गया बीज क्रमशः बढ़ता है वैसे ही यह प्रतिष्ठा श्रीसंघ के लिए उत्तरोत्तर कल्याणकारी बने, इस उद्देश्य से भी जवारारोपण किया जाता है । जवादि धान्यों का रोपण चार गति का क्षय करने के लिए चार कोनों में तथा सात भय को दूर करने के लिए सातसात ऐसे कुल 28 सकोरों में किया जाता है। जवारारोपण के माध्यम से जिनालय के बाह्याभ्यन्तर विकास का संकेत प्राप्त होता है। जौ आदि धान्य प्रतिष्ठा के दिन तक जितनी मात्रा में बढ़ते हैं प्रतिष्ठा उतनी ही अधिक सफल मानी जाती है। इस प्रकार यह विधान प्रतिष्ठा की सफलता का द्योतक है। जवारारोपण किस दिन और कहाँ करना चाहिए? जवारारोपण एक मंगल अनुष्ठान होने से प्रतिष्ठा - पूजा आदि मंगल कार्यों में प्रायः प्रथम दिन किया जाता है। कुम्भस्थापना, दीपकस्थापना और जवारारोपण ये तीनों विधान लग्नादि की शुद्धि देखकर एक ही दिन किये जाते हैं। वर्तमान में उक्त तीनों विधियाँ महोत्सव के प्रारम्भ में सम्पन्न की जाती हैं। जवारारोपण जिनालय के सभा मण्डप में वेदिका के चारों ओर अथवा वेदिका के सम्मुख करते हैं। यदि पूजा आदि के लिए पृथक से मंडप की व्यवस्था हो तो वहाँ भी निर्मित वेदी के चारों ओर अथवा उसके सम्मुख जवारारोपण किया जाता है। जवारारोपण किसके द्वारा किया जाना चाहिए? - इस विधि में कुँवारी कन्याओं के द्वारा गेहूँ, चना, जौ, जवार, मूंग, उड़द और शालि (छिलका युक्त चावल) इन सप्त धान्यों को मिट्टी, छणकचूर्ण एवं जल में मिश्रित करवाकर मिट्टी के सकोरों में डलवाया जाता है। तत्पश्चात प्रचलित परम्परा के अनुसार प्रत्येक सकोरों के ऊपर कुंकुम, सुपारी एवं पैसा चढ़ाते हैं। फिर मन्त्रोच्चारण पूर्वक कुंकुम का छिड़काव करते हुए उनका रोपण करते हैं।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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