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________________ अध्याय-13 प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन प्रतिष्ठा एक बृहद् अनुष्ठान है। इसके अन्तर्गत अनेकशः छोटे-छोटे विधानों का समावेश हो जाता है। उन सभी क्रिया विधानों को जब सम्यक समझ, शास्त्रोक्ति विधि एवं भावपूर्वक सम्पन्न किया जाता है तब ही एक सफल प्रतिष्ठा अनुष्ठान सम्पन्न होता है। इन आंशिक विधानों के अन्तर्भूत घटकों का प्रकृति पर अद्भुत असर देखा जाता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए इस अध्याय में प्रतिष्ठा सम्बन्धी कई विधियों के भिन्न-भिन्न पक्षों को उजागर किया जा रहा है जिससे जिज्ञासु आराधक वर्ग प्रतिष्ठा जैसे महत्त्वपूर्ण विधानों की महत्ता को समझकर उन्हें त्रियोग की शुद्धिपूर्वक सम्पन्न कर सकें। कुछ मुख्य विधानों का स्वरूप इस प्रकार है अधिवासना विधि का मार्मिक स्वरूप प्रतिष्ठा से सम्बन्धित कृत्यों में एक अधिवासना विधि होती है। अधिवासना का शाब्दिक अर्थ है- सुगंध से वासित करना, संस्कारित करना। यहाँ अधिवासना से अभिप्राय चंदन, केसर, पुष्प आदि द्रव्यों को मंत्रों से अभिमंत्रित करना है। इसी तरह जिनबिम्ब आदि को तद्योग्य मंत्रों से अभिमंत्रित करना अधिवासना कहलाता है तथा अभिमंत्रित वस्तु अधिवासित कही जाती है। जिन प्रतिमा में वीतरागता आदि गुणों का संचार करने के लिए अधिवासना विधि करते हैं। इसे प्रतिष्ठा का पूर्व चरण भी कह सकते हैं। ___ अधिवासना होने के पश्चात ही प्रतिमा को निश्चित स्थान पर प्रतिष्ठित किया जाता है। इस क्रिया के द्वारा प्रतिष्ठाचार्य के साधना बल का बिम्ब में संक्रमण होता है जिससे प्रतिमा चमत्कारी बनती है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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