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________________ प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन ...li बहुमान कितने स्तर तक किया जाना चाहिए? इस सम्बन्धी सयुक्तिक निरूपण किया गया है। सत्रहवाँ अध्याय पूर्व विवक्षित समस्त अध्यायों का सारगर्भित विवेचन करते हुए उपसंहार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जिनालय निर्माण सम्बन्धी विशिष्ट शब्दों के संकेतार्थ परिशिष्ट के रूप में दिए गए हैं। इससे पाठक वर्ग को शिल्पशास्त्र के परम्परागत शब्दों का सुगम बोध हो सकेगा। अंजनशलाका-प्रतिष्ठा भावगर्भित एवं रहस्यमयी क्रिया होने से इसके मुख्य अधिकारी आचार्य माने गये हैं और उन्हें यह अधिकार गुरु परम्परा से प्राप्त होता है इसलिए वे इस विषयक गुप्त मन्त्रों एवं तत्सम्बन्धी रहस्यों के पूर्ण ज्ञाता होते हैं अतः इस सम्बन्ध में जितना स्पष्ट वर्णन आचार्य या गीतार्थ मुनि कर सकते हैं उतना मुझ अल्पज्ञा द्वारा अशक्य है। त्रियोग की शुद्धि पूर्वक इस शोध कार्य को करते हुए छद्मस्थ बुद्धिवश जिनाज्ञा एवं आचरण विरुद्ध कुछ भी लिखने में आया हो तो मिच्छामि दुक्कडं । प्रबुद्ध वर्ग अज्ञानतावश हुई भूलों से अवश्य अवगत करवाएँ, यह नम्र निवेदन है। अन्त में कहना चाहूँगी कि जिनबिम्ब एवं प्रतिष्ठा सम्बन्धी यह कृति हमारे मन मन्दिर में परमात्म शक्ति का प्रस्फुटन करें, आत्मभावों का निर्मलीकरण करें एवं कल्याण मार्ग का पथ प्रशस्त करें इन्हीं शुभाशंसाओं के साथ।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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