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________________ अठारह अभिषेकों का आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन 463 एवं विष का नाश करने में समर्थ है। इसके माध्यम से जिनबिम्ब के ऊपर वातावरण जनित दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है। 6. विष्णुक्रांता (अपराजिता ) - अपराजिता नाम की यह वनस्पति शीतल, कड़वी, बुद्धिदायक, नेत्र हितकारी, विषनाशक और मस्तकशूल में लाभदायी है। इससे भूत-प्रेत की बाधा आदि का भी नाश होता है। 7 चक्रांका (नागरमोथा) - नागरमोथा के नाम से प्रसिद्ध यह औषधि प्राकृतिक गुणों से शीतल, कड़वी, कफ-पित्त नाशक, कांतिवर्धक एवं श्रम निवारक है। यह वायु विकार (गैस), मृगी, बिच्छू का जहर, अरुचि, बवासिर आदि में भी लाभकारी है। इससे प्रतिमा की कांति बढ़ती है जिसके प्रभाव से दर्शनार्थियों की थकान दूर होती है। 8. सर्पाक्षी (सरहटी) - वनौषधि चंद्रोदय के अनुसार यह गरम, कड़वी, कृमिनाशक और चूहे, बिच्छू एवं सर्प विष में लाभकारी है। इससे मंगलकार्यों में विघ्न आने से रक्षा होती है। 9. महानील- यह औषधि अनेक गुणों से युक्त है। इस प्रकार उक्त सभी औषधियाँ मुख्य रूप से विषहरण करने वाली, ऊपरी बाधाओं को नष्ट करने वाली तथा प्राकृतिक विकारों को दूर करने वाली मानी गई हैं। इससे महोत्सव के दौरान अनेक प्रकार के अमंगल से भी रक्षा होती है। आठवाँ अभिषेक यह स्नात्र प्रथम अष्टकवर्ग की औषधियों से किया जाता है। इसमें कुष्ट, प्रियंगु, वचा, रोध्र, उशीर, देवदारु, दुर्वा, मधुयष्टिका, ऋद्धि एवं वृद्धि औषधियों का समावेश होता है। इनमें निम्नोक्त गुण पाए जाते हैं। 1. कुष्ट— कुष्ट एक उच्च रासायनिक औषधि है । यह कड़वी, तीक्ष्ण सुगंध से युक्त, रक्तविकार शोधक, वात-कफ नाशक है। इससे सिरदर्द, लकवा, खाँसी, चक्षुरोग एवं विष निवारण किया जा सकता है। यह वातावरण को मनोरम बनाती है। 2. प्रियंगु — प्रियंगु सौंदर्यवर्धक औषधि है। यह कड़वी, शीतल ज्वरनाशक, चर्मरोग एवं कुष्ट आदि में लाभदायी है। इससे प्रतिमा के सौंदर्य आदि में वृद्धि होती है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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