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________________ अठारह अभिषेकों का आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन 461 जाता है। गाय के छाणे की राख, कोयले आदि राख की अपेक्षा अधिक हल्की एवं शुद्धिकारक होती है। इसका प्रयोग जिन बिंब को सभी दोषों से मुक्त करता है। 6. दर्भ (कुश) - हिन्दू धर्मशास्त्र में कुश या डाभ को एक पवित्र वस्तु के रूप में मान्यता दी गई है। मांगलिक कार्यों में इसका उपयोग रक्षा हेतु किया जाता है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार यह तत्त्व स्निग्ध, रजोदोषनाशक, मधुर, शीतल, रक्तविकार शोधक और लाभदायक है। इस प्रकार पंचगव्य सम्बन्धी पदार्थों के संयुक्त जल का अभिषेक करने पर जिनबिम्बों का शुद्धिकरण एवं सर्व दोषों का निर्गमन होता है । छठा अभिषेक छठा अभिषेक सदौषधि स्नात्र कहलाता है। इसमें सहदेवी, बला, शतमूली, शतावरी, कुमारी, गुहा, सिंही, व्याघ्री इन आठ प्रकार की सदौषधियों से स्नान किया जाता है। 1. सहदेवी- यह औषध मीठा, शीतल, पौष्टिक, अग्निवर्धक, ज्वरकृमि एवं विषनाशक तथा नेत्र रोग में लाभदायक है। मधुर, 2. शतमूली (शतावरी ) - आयुर्वेद शास्त्र में शतावरी को शीतल, बुद्धिवर्धक, पौष्टिक, स्निग्ध, नेत्र हितकारी, वात-पित्त-कफ नाशक, रक्तशोधक एवं अवस्था स्थापक माना गया है। इससे प्रतिमा की स्निग्धता और नेत्रों के आकर्षण में वृद्धि होती है । 3. कुमारी ( ग्वारपाठा, घीकुँवार) - कुमारी को ग्वारपाठा (एलोवेरा) के नाम से जाना जाता है। यह स्वभावतः कड़वी, शीतल, पुष्टिकर, स्निग्ध, रक्त शोधक, नेत्र हितकर एवं विषनाशक है। इसके संयोग से प्रतिमा का स्पर्श अधिक मुलायम होता है और चमक बढ़ती है। 4. व्याघ्री (ऐरंड) - लोकव्यवहार में इस औषधि को एरंड कहते हैं। यह प्रकृति के अनुसार मधुर, विष दर्द नाशक, जलोदर - ज्वर - कुष्ठ आदि रोगों में लाभदायी है। इसका प्रयोग हृदय शूल, उदर शूल, एपेंडिसाइटिस आदि स्थितियों में विशेष प्रभावी होता है। इसके स्पर्शन से जिनबिंब के प्रभाव में अपेक्षाधिक वृद्धि होती है और पाषाण के विकार दूर होते हैं।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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