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________________ 428... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन वस्तुओं से निर्मित की जाती है क्योंकि वह विविध फल देने वाली तथा आनंद, सुख एवं संतुष्टि देने वाली होती है। उनका रहस्यमय प्रभाव गुरुगम्य है। आचारदिनकर में वर्णित गणपति की प्रतिष्ठा विधि निम्न प्रकार है सर्वप्रथम शुभ दिन में जिनबिम्ब की स्नात्र पूजा करें। फिर गणपति आदि की मूर्ति परमात्म बिम्ब के आगे स्थापित करें। तत्पश्चात निम्न मंत्र का स्मरण करते हुए स्वर्णमाक्षिका (एक प्रकार का खनिज पदार्थ) से गणमूर्ति को कराएँ। 'ॐ गां गीं गूं गौं गः गणपतये नमः ।' तदनन्तर मूल मंत्र पूर्वक तीन बार गणपति के सर्वांग पर सिन्दूर लगाएँ । फिर एक सौ आठ लड्डू चढ़ाएँ। फिर अन्त में करबद्ध अंजलि से निम्न स्तुति बोलें जय-जय लम्बोदर परशु, वरदयुक्तापसव्यहस्त युग । सव्यकर मोदका भय, धरयावकवर्ण पीतलसिक ।। मूषक वाहन पीवर जंघा, भुजबस्तिलम्बिगुरु जठरे । वारणमुखैकरद वरद, सौम्य जयदेव गणनाथ ।। सर्वाराधन समये, कायरिम्भेषु मंगला चारे । मुख्ये लभ्ये लाभे, देवैरपि पूज्यसे देव ।। माणुधण आदि कुल देवों की प्रतिष्ठा भी इसी प्रकार शान्ति मंत्र से करें 107 ।। इति गणपति प्रतिष्ठा विधि ।। जलाशय प्रतिष्ठा विधि तालाब, सरोवर, कूप, टांका आदि अनेक प्रकार के जलाशय होते हैं। किसी भी प्रकार के जलाशय की प्रतिष्ठा जलाशय कर्त्ता के चन्द्रबल एवं शुभ दिन में करनी चाहिए। जलाशय की प्रतिष्ठा पूर्वाषाढ़ा, शतभिषा, रोहिणी एवं धनिष्ठा नक्षत्रों में न करें। प्रतिमा पूजन आदि के लिए शुद्ध जल की नित्य आवश्यकता होती है। गृह कार्यों एवं खान-पान में भी शुद्ध जल का प्रयोग किया जाये तो कई दृष्टियों से लाभदायी है। जलाशय की प्रतिष्ठा जल देवता को प्रसन्न रखने एवं उनकी अनुमति प्राप्त करने के उद्देश्य से की जाती है। यह अध्यात्म जगत का नियम है कि मिट्टी का एक कण भी उस क्षेत्र के देवता की आज्ञा बिना ग्रहण नहीं करना चाहिए,
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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