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________________ ग्रह नाम सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ... 423 उपास्य तीर्थंकर नाम पद्मप्रभ चन्द्रप्रभ वासुपूज्य विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, शांतिनाथ, नमिनाथ, महावीर ऋषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ, सुपार्श्वनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ सुविधिनाथ मुनिसुव्रत नेमिनाथ मल्लिनाथ, पार्श्वनाथ आचार्य वर्धमानसूरि ने सूर्यादि नवग्रह की मूर्तियों को स्थापित करने का उल्लेख किया है चूँकि नवग्रह की शान्ति उन ग्रहों के जाप स्मरण से भी होती है। आचार दिनकर के निर्देशानुसार नवग्रह मूर्ति स्थापना की विधि निम्न प्रकार हैसर्वप्रथम संघ जिनालय में या गृह देरासर में बृहत्स्नात्र विधि द्वारा जिन बिम्ब को स्नान कराएं। तत्पश्चात एक, दो, तीन, चार, पाँच या जितनी मूर्तियों की आवश्यकता हो उतनी मूर्तियाँ अथवा नवग्रह अंकित पट्टा जिन प्रतिमा के आगे स्थापित करें। फिर स्नात्र जल से मिश्रित पंचामृत द्वारा उसे प्रक्षालित करें। फिर शुद्ध जल से प्रक्षालित कर उसे पौंछें। • उसके बाद प्रत्येक ग्रह के मंत्र को तीन-तीन बार बोलकर तत्सम्बन्धी मूर्तियाँ अथवा पट्ट पर तीन बार ( पच्चीस वस्तुओं से निर्मित) वासचूर्ण डालें, इससे ग्रहमूर्ति या ग्रहपट्ट की स्थापना (प्रतिष्ठा) हो जाती है। नवग्रह स्थापना के मंत्र अधोलिखित हैं सूर्य मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं घृणि- घृणि नमः सूर्याय भुवनप्रदीपाय जगच्चक्षुषे जगत्साक्षिणे भगवन् श्री सूर्य इह मूर्ती स्थापनायां अवतर अवतर तिष्ठ तिष्ठ प्रत्यहं पूजकदत्तां पूजां गृहाण-गृहाण स्वाहा।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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