SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...417 इसी विधि से दोष युक्त ध्वजा, प्रासाद, चूलक आदि का भी विसर्जन करना चाहिए।57 ।। इति प्रतिमा विसर्जन विधि ।। स्थापनाचार्य प्रतिष्ठा विधि विधिमार्गप्रपा के उल्लेखानुसार स्थापनाचार्य की प्रतिष्ठा निम्न विधि से करें • स्थापनाचार्य कोड़ी (शंखा कृति), स्फटिकमणि अथवा चन्दन के होते हैं। उन पर चक्षु युगल, कर्ण युगल, हस्त युगल, पाद युगल की कल्पना करते हुए सकलीकरण एवं शुचिविद्या का आरोपण करें। • तत्पश्चात गरुड़ आदि मुद्राएँ दिखाते हुए सर्व प्रकार के उपद्रवों को दूर करें। • उसके बाद गोशीर्ष चन्दन से स्थापनाचार्य का लेप करें। फिर उस पर पंच परमेष्ठी अथवा पंचाचार के प्रतीक रूप में चन्दन रस से पाँच तिलक करें। • तदनन्तर गणधर मन्त्र अथवा वर्धमान विद्या का स्मरण करते हुए उस पर सात बार वासचूर्ण डालें। इतनी विधि से स्थापनाचार्य की प्रतिष्ठा हो जाती है।58 ॥ इति स्थापनाचार्य प्रतिष्ठा विधि ।। सिद्धमूर्ति प्रतिष्ठा विधि प्रत्येक संसारी जीव आठ कर्मों से आबद्ध है। इन सर्व कर्मों से मुक्त होने वाली आत्मा सिद्ध कहलाती है। जिन शासन में पन्द्रह प्रकार के सिद्ध माने गये हैं। जो आत्मा जिस लिंग या वेश से सिद्ध हुई उस वेश के अनुरूप मूर्ति का निर्माण करना सिद्ध मूर्ति कहलाती है। सभी प्रकार के सिद्ध मूर्तियों की प्रतिष्ठा विधि समान है। आचार दिनकर में सिद्ध मूर्ति प्रतिष्ठा की निम्न विधि बतायी गयी है सर्वप्रथम प्रतिष्ठा करवाने वाला गृहस्थ अपने घर पर शान्तिक एवं पौष्टिक कर्म करें। फिर बृहत्स्नात्र विधि से प्रतिष्ठित बिम्ब की स्नात्र पूजा करें। उसके बाद निम्न मूल मंत्र का स्मरण करते हुए सिद्ध मूर्ति का पंचामृत स्नात्र करें। फिर पुनः मूल मंत्र का उच्चारण कर सर्वांगों पर तीन-तीन बार वासचूर्ण डालें।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy