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________________ 412... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन जीर्णवास्तु पाडन विधि प्रतिमा का उत्थापन करने के पश्चात जीर्ण-शीर्ण मलवे को गिराने का कार्य प्रारम्भ करना चाहिए। उसके लिए स्वर्ण अथवा रजत का हाथी या बैल बनवायें। फिर शुभ महर्त्त में उसके दाँत अथवा सींग से जीर्ण वस्तु गिराना शुरू करें। उसके बाद श्रेष्ठ शिल्पी सम्पूर्ण वास्तु को गिरा दें।50 उल्लेखनीय है कि जीर्ण वास्तु गिराने का कार्य ईशान दिशा से प्रारम्भ करना चाहिए। फिर ईशान से वायव्य एवं आग्नेय की ओर यह कार्य करते हुए नैऋत्य दिशा का भाग सबसे अंत में गिराना चाहिए। गिराये हुए मलबे को उत्तर, ईशान तथा पूर्व दिशा में एकत्रित नहीं करें। इस मलबे को दक्षिण, नैऋत्य अथवा पश्चिम में रखें। जीर्णोद्धार प्रारम्भ विधि ___ पहले की जीर्ण वास्तु को पूर्ण रूप से गिरा देने के पश्चात पुनर्निर्माण का कार्य शुभ नक्षत्र आदि, श्रेष्ठ चन्द्र और तारा बल संयुक्त मुहूर्त में तथा अमृतसिद्धि योग में आरम्भ करना चाहिए।51 जीर्णोद्धार का फल जिनमन्दिर का निर्माण कार्य उत्कृष्ट पुण्य सर्जन का हेतु है। यद्यपि पूर्वाचार्यों एवं शिल्पकारों ने नव निर्माण की अपेक्षा प्राचीन जीर्ण मन्दिर का उद्धार करने पर विशेष बल दिया है। शजय रास में जीर्णोद्धार का पुण्य फल बताते हुए कहा गया है शत्रुजय ऊपर देहरो, नवो निपावे कोय । जीर्णोद्धार करावतां, आठ गुणो फल होय ।। प्रासाद मंडनकार ने भी यही कहा है कि नया मंदिर बनाने के स्थान पर प्राचीन जीर्ण-शीर्ण देवालय का जीर्णोद्धार किया जाये तो आठ गुना अधिक पुण्य का अर्जन होता है। तदनुसार देव स्थान के अतिरिक्त कूप, बावड़ी, तालाब और भवन का जीर्णोद्धार करने से भी आठ गुणा पुण्य प्राप्त होता है।52 ॥ इति जीर्णोद्धार विधि ।।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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