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________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...345 मन्त्र- ॐ हाँ ही परम-अर्हते पिपल्यादिमहाछल्ली कषायचूर्ण संयुत जलेन स्नापयामीति स्वाहा। 4. मंगल मृत्तिका स्नात्र- मंगल मिट्टियों के चूर्ण को जल में संयुक्त कर उसके चार कलश भरें। उसके बाद 'नमोऽर्हत्.' कह निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़ें। फिर ध्वजदंड का अभिषेक एवं तिलक आदि से उसकी पूजा करें। पर्वतसरोनदी संगमादिमृदभिश्च मंत्र पूताभिः । उद्वर्त्य ध्वजदण्डं, स्नपयाम्यधिवासना समये ।। मन्त्र-ॐ ह्रां ह्रीं परम-अर्हते नद्यादिमृच्चूर्ण संयुत जलेन स्नापयामीति स्वाहा। 5. मलिका स्नात्र- मूलिका चूर्ण को जल में डालकर उसके चार कलश भरें। फिर. 'नमोऽर्हत.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर ध्वजदंड अथवा कलश का अभिषेक करें। सुपवित्रमूलिकावर्ग, मर्दिते तदुदकस्य शुभ धारा । दण्डेऽधिवासना समये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती।। मन्त्र- ॐ हाँ ह्रीं परम-अर्हते मूलिकाचूर्ण संयुत जलेन स्नापयामीति स्वाहा। 6. अष्टवर्ग स्नात्र- प्रथम अष्टक वर्ग की औषधि चूर्ण को जल में मिश्रित कर उसके चार कलश भरें। फिर 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़ें। नाना कुष्टाधौषधि सन्मृष्टे, तद्युतं पतनीरम् । दण्डे कृतसन्मंत्रं, कौंचं हन्तु भव्यानाम् ।। मन्त्र- ॐ ह्रां ह्रीं परम-अर्हते कुष्टाद्यष्टकवर्गचूर्ण संयुत जलेन स्नापयामीति स्वाहा । . उक्त काव्य बोलकर 27 डंका बजवायें, अभिषेक करें, तिलक करें, पुष्प चढ़ायें और धूप प्रगटायें। 7. सौषधि स्नात्र- सौषधि चूर्ण को जल में मिश्रित कर उन्हें चार कलशों में भरें। फिर 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर 27 डंका बजवायें सकलौषधिसंयुतया, सुगन्धया घर्षितं सुगति हेतोः । स्नपयामि ध्वजदण्डं, मन्त्रित तन्नीर निवहेन ।।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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