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________________ 342... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन मन्त्र- ॐ हाँ ही परम-अर्हते तीर्थोदकेन स्नापयामीति स्वाहा तदनन्तर तीर्थों के जल से जिन बिम्बों का अभिषेक करें तथा पूर्ववत तिलक, पुष्प एवं धूप पूजा करें। 17. सप्तदश-कर्पूर स्नात्र- सत्रहवें अभिषेक में कपूर मिश्रित जल को कलशों में भरकर जिनबिम्ब के निकट खड़े हो जायें। उस समय गुरु भगवन्त या विधिकारक 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर 27 डंका बजवायें। शशिकर तुषारधवला, उज्ज्वल गंधा सुतीर्थजल मिश्रा । कर्पूरोदकधारा, सुमंत्रपूता पततु बिम्बे।। मंत्र- ॐ हाँ ही परम-अर्हते कपूरण स्नापयामीति स्वाहा। तदनन्तर कर्पूर मिश्रित जल से जिनबिम्बों का अभिषेक करें। फिर पूर्ववत तिलक, पुष्प एवं धूप पूजा करें। ___18. पुष्पांजलि लेप स्नात्र- अठारहवें अभिषेक में 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र बोलकर 27 डंका बजवायें। फिर जिन बिम्बों पर दोनों हाथों से पुष्प चढ़ायें तथा पुन: पूर्ववत तिलक आदि से पूजा करें। नाना सुगन्धि पुष्पौघ, रञ्जिता चंचरीक कृत नादा । धूपामोदविमिश्रा, पततात्पुष्पांजलिर्बिम्बे ।। मन्त्र- ॐ ह्रां ह्रीं हूँ कुसुमांजलिभिरर्चयामीति स्वाहा 19. एक सौ आठ शुद्ध जलों का स्नात्र- इससे पूर्व अठारह अभिषेकों में प्रयुक्त की गई औषधियों के स्पर्श से जिन बिम्बों पर किसी तरह की चीकाश (स्निग्धता) रह गई हो तो उसे दूर करने के लिए 108 शुद्ध जल के कलशों से अभिषेक किया जाता है। इस अभिषेक के समय भी स्नात्रकार जल से भरे कलशों को लेकर प्रतिमाओं के निकट खड़े रहें तथा निम्न श्लोक सुनते हुए 108 कलशों से स्नात्र करें। चक्रे देवेन्द्रराजैः सुरगिरि शिखरे योऽभिषेकः पयोभिनृत्यन्तीभिः सुरीभिललित पदगमं, तूर्यनादैः सुदीप्तैः कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनकं, मन्त्रपूतैः सुकुम्भैर्बिम्बं जैनं प्रतिष्ठा विधि वचन परः, स्नापयाम्यत्र काले ।। तदनन्तर जिन बिम्बों पर अंगलूंछन करके चन्दन आदि का विलेपन करें। फिर प्रतिमाओं के सम्मुख पान, सुपारी, फल आदि चढ़ायें। उसके बाद
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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