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________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...289 प्रासादेऽत्रस्थिरा भूत्वा, सौभागिनी! शुभं कुरु । धन धान्य समृद्धिं च, सर्वदा कुरु नन्दिनि ।। 9. धरणी- (1) 'ॐ आधारशिले! सुप्रतिष्ठिता भव' (2) 'ॐ खव! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ रवर्वनिधये नमः' (3) 'ॐ नागाय नमः, ॐ उत्तराय नमः' (4) 'ॐ धरणि! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ धरण्यै नमः' - इन मन्त्रों के द्वारा धरणी शिला को वास्तु के मध्य भाग में स्थापित कर निम्न प्रार्थना करें धरणि! लोक धरणी, त्वामत्र स्थापयाम्हम् । निर्विघ्नं धारय त्वं मे, प्रासादं सर्वदा शुभे ।। तदनन्तर अभिषेक द्वारा पवित्र किए गए सोना, चाँदी या तांबा के कूर्म को हाथ में लेकर 'ॐ कूर्म! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ कूर्माय नमः'- इस मन्त्र पूर्वक उसे मध्यशिला के ऊपर प्रतिष्ठित करें। फिर उस पर वासचूर्ण डालें, केसर-चंदन से पूजा करें, धूप प्रगटाएँ और निम्न श्लोक से प्रार्थना कर पुष्पांजलि का प्रक्षेपण करें सर्व लक्षण संपन्न! कूम! भूधरणं क्षम । चैत्य कर्तुं महीपृष्ठे, ममाज्ञां दातुमर्हसि ।। फिर वाजिंत्र बजवाएं, दिक्पालों को बलि प्रदान करें, गृह स्वामी यथाशक्ति याचकों को दान दें, साधर्मिक भक्ति एवं प्रभावना आदि करें, शिल्पकार का सत्कार करें। शिलान्यास का शुभाशुभ फल विधि पूर्वक शिलान्यास करने के पश्चात गड्ढों को सुगंधित जल से भरकर उसमें पुष्पों एवं अक्षतों को डालें। फिर आवर्त के द्वारा परीक्षा करें। यदि उन खड्डों के जल में दक्षिणावर्त उत्पन्न हो अर्थात पुष्प-अक्षत आदि सृष्टिक्रम से घूमते हुए देखे जाएं तो उत्तम फल, यदि सृष्टि क्रम से विपरीत (वामावर्त्त से) घूमते हुए देखे जाएं तो अशुभ फल तथा कुछ भी निमित्त नहीं देखे जाएं तो मध्यम फल समझना चाहिए। अशुभ निमित्त दृष्टिगोचर होने पर शुभ मुहूर्त में पुन: शिलान्यास करना चाहिए। ___ शिलाओं की स्थापना करने के बाद शिल्पकार मध्य शिला के चारों ओर की शिलाओं के ऊपर चार-चार थर आए उतनी ईंटों को मजबूती से चण लें अर्थात मध्य शिला के चारों ओर चोरस कुंडी का आकार करके ऊपर से दसवीं
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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