SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ... 277 निम्न मन्त्रोच्चारण पूर्वक धूप आदि द्रव्य चढ़ायेंॐ वास्तोष्पतये धूपं समर्पयामि स्वाहा ॐ वास्तोष्पतये चन्दनादिकं समर्पयामि स्वाहा ॐ वास्तोष्पतये पुष्पाणि समर्पयामि स्वाहा ॐ वास्तोष्पतये वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा ॐ वास्तोष्पतये फलं समर्पयामि स्वाहा ॐ वास्तोष्पतये दीपं समर्पयामि स्वाहा ॐ वास्तोष्पतये नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा ॐ वास्तोष्पतये अक्षतादिकं समर्पयामि स्वाहा फिर प्रार्थना पूर्वक हाथ जोड़कर निम्न श्लोक बोलें वास्तु पुरुष! नमस्तेऽस्तु भूमिशय्यारत प्रभो । मद्गृहं धन धान्यादि, समृद्धं कुरु सर्वदा ।14।। • तत्पश्चात अंजलि में शुद्ध जल ग्रहण कर निम्न मंत्र कहते हुए वास्तु पुरुष का विसर्जन करें ॐ वास्तोष्पतये ब्रह्मणे विसर विसर पुनरागमनाय स्वाहा • तत्पश्चात खात स्थान पर जायें। वहाँ निम्न मंत्र बोलकर गंध- पुष्पफल-अक्षतादि अर्पित करते हुए भूमि को अर्घ्य दें आगच्छ सर्व कल्याणि! वसुधे! लोक धारिणि । पृथिवि हेमगर्भाऽसि, काश्यपेनाऽभिवन्दिता । 1511 चैत्यं तु कारयाम्यद्य, त्वदूद्धव शुभलक्षणम् । गृहाणार्घ्यं मया दत्तं, प्रसन्ना शुभदा भव ।16।। • फिर निम्न श्लोक बोलकर पृथ्वी से क्षमा की प्रार्थना करें। क्षमे ! क्षमस्व मर्त्याघं, मेदिनि! चैत्यकर्म समारंभे, करिष्ये तव मनुजाम्बिके । छट्टनम् । । 7 ।। तदनन्तर कुदाली आदि खातोपकरण के ऊपर सुवर्ण जल छींटें। केसरचंदन आदि सुगंधी पदार्थों के छींटे डालें। फिर लग्न समय आ जाने पर वार्दित्र नाद एवं जयघोष पूर्वक खात मुहूर्त्त करें। खात के समय कम से कम एक हाथ गहरा एवं समचौरस खड्डा खोदना आवश्यक है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy