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________________ 270... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन ___माता का दृश्य उपस्थित करते समय अध्यवसायों को इतना निर्मल कर लें कि सचमुच में किसी जन्म में तीर्थङ्कर की माता बनने का प्रत्यक्ष सुख मिल सके। कई बार कृत्रिम नाटक भी जीवन की हकीकत बन जाते हैं। पिता द्वारा करने योग्य भाव- पिता का रोल अदा करते हुए यह चिन्तन करें कि मैं पिता अश्वसेन, सिद्धार्थ आदि के समान तो पुण्यशाली नहीं हूँ फिर भी नाम मात्र से जुड़ने का जो सौभाग्य प्राप्त हुआ है, वह भी मुझ जैसे पामर के लिए कम नहीं है। नि:सन्देह आज मैं कृतपुण्य हूँ जो भगवान के पिता के नाम से पहचाना जा रहा हूँ। भूत द्रव्य निक्षेप की अपेक्षा से यावत जीवन इस शुभ प्रसंग की स्मृति मुझे सुकृत के लिए बोध देती रहेगी। अहो! इससे अधिक धन्यतम अवसर कौन सा हो सकता है? इन्द्र-इन्द्राणी द्वारा करने योग्य भाव- हे जग उद्धारक! देव भव की प्राप्ति पुण्य बल से अवश्य होती है किन्तु उसमें पाप बंध अधिक रहता है। आप जैसी दिव्य आत्माओं के जन्मादि के शुभतम एवं शुद्धतम प्रसंग का साक्षात्कार करने पर प्रकृष्ट पुण्य का उपार्जन होता है। हे भगवन्! मुझमें इन्द्रादि देवताओं के समान भक्ति करने का सामर्थ्य तो नहीं है फिर भी उस तरह के भावों से यह भूमिका अदा कर रहा हूँ। कहा भी गया है 'भावना भव नाशिनी।' हे परमेश्वर! भवान्तर में साक्षात इन्द्र-इन्द्राणी के रूप में आप सदृश तीर्थङ्करों का कल्याणक उत्सव सम्पन्न कर सकूँ, ऐसा आत्मबल प्रदान करियेगा, जिससे मेरा जन्म-जन्मान्तर सफल हो जाये। दादी के द्वारा करने योग्य भाव- लोक व्यवहार में देखते हैं कि दादी के लिए पुत्र से भी अधिक पौत्र प्रिय होता है। इसी नियम के आधार पर दादी का दृश्य उपस्थित करने वाली महिला यह चिन्तन करें कि हे भगवन! आपकी दादी बनने का सौभाग्य प्राप्त होने के कारण मैं निश्चित रूप से हर्षित और आनंदित हूँ। परन्तु आपके दीक्षा प्रयाण की कल्पना से मुझ पर वज्रपात सा हो गया है, आँखों से बह रही अश्रुधारा को रोक पाना मुश्किल हो रहा है। हे प्राणप्रिय परमात्मन्! मेरी अगाध प्रीति को समझते हुए मुझे भी अपने साथ ले चलो। यहाँ दादी का पौत्र के प्रति रहा हुआ प्रशस्त स्नेह कर्मक्षय में निमित्त बनता है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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