SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 260... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन तीर्थंकरों का दीक्षा कल्याणक स्थान सभी तीर्थङ्करों का दीक्षा कल्याणक प्रायः उनकी जन्म नगरी के निकटवर्ती वन खण्ड में किसी वृक्ष के नीचे मनाया जाता है। दीक्षा कल्याणक सम्पन्न होते ही उन्हें चौथा मन:पर्यवज्ञान प्रकट हो जाता है। वे स्वयं बुद्ध होते हैं और केवलज्ञान प्राप्ति से पूर्व किसी को दीक्षित भी नहीं करते । दीक्षा कल्याणक कौन - कौन मनाते हैं? परमात्मा के दीक्षा कल्याणक उत्सव में करोड़ों देवी-देवता एवं हजारों ग्राम-नगरवासी उपस्थित होते हैं। परमात्मा दीक्षा लेने जाते हैं तब कई लोग उनके साथ भी दीक्षित होते हैं जैसे भगवान आदिनाथ, भगवान पार्श्वनाथ आदि के साथ अनेकों लोग दीक्षित हुए थे, वहीं महावीर स्वामी ने अकेले ही दीक्षा ग्रहण की। परमात्मा के दीक्षा प्रयाण के प्रसंग को उकेरते हुए किसी कवि ने कहा है नयणमाला सहस्सेहिं वयणमाला सहस्सेहिं अंगुलिमाला सहस्सेहिं अतः परमात्मा की दीक्षा सामान्य रूप में नहीं हजारों लोगों के बीच भव्य उत्सव के रूप में होती है । दीक्षा कल्याणक की भव्यता एवं महत्ता तीर्थङ्कर परमात्मा जब दीक्षा ग्रहण करते हैं वह अवसर अत्यन्त मार्मिक होता है। उस दृश्य की कल्पना से ही मन का रोयां-रोयां कांप उठता है। जिनके चरणों में लक्ष्मी सदा आलोटने को इच्छुक रहती है ऐसे परमात्मा स्वजन, बंधुजन, वस्त्र, अलंकार, राज्य आदि सभी आकर्षक वस्तुओं का हँसते-हँसते त्याग कर देते हैं तथा भावों से राग-द्वेष आदि वैभाविक परिणतियों का त्याग करते हैं। जिन्होंने राजमहलों में रहते हुए ठंडी - गर्मी, धूप- बारिश किसी भी प्रतिकूल परिस्थितियों का अनुभव तक नहीं किया, किन्तु दीक्षा लेते ही उपसर्ग, परीषह एवं प्रतिकूल स्थितियों को स्वयं आमंत्रित करते हैं। भगवान आदिनाथ ने तेरह महीने निराहार बिताये तो प्रभु पार्श्वनाथ के ऊपर कमठ के जीव ने नाक तक पानी की बारिश की। भगवान महावीर के जीवन में तो संगम देव ने उपसर्गों की बरसात ही कर दी। इन सब स्थितियों में परमात्मा अडिग रहे। उनके मुख
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy