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________________ पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ... 243 समस्त दर्शनों में एक मात्र जैन दर्शन ही ऐसा है, जो प्रत्येक आत्मा में सत्ताभूत परमात्म स्वरूप के प्रकटीकरण का मार्ग दर्शाता है। अब तक जितने भी अरिहंत, सिद्ध, केवली आदि हुए हैं वे स्वयं के पुरुषार्थ के आधार पर ही पूर्णानन्द स्वरूप को प्राप्त कर पाए हैं। परमात्मा के जीवन की प्रत्येक घटना अपने आप में अनेक रहस्यों को समाहित करती है। प्रश्न हो सकता है कि जब परमात्मा का समस्त जीवन ही प्रेरणास्पद है तो फिर कल्याणक पाँच ही क्यों? यह यथार्थ है कि परमात्मा का सम्पूर्ण जीवन स्व-पर हित के लिए होता है। उसके बावजूद भी जन्मादि के प्रसंगों का अलौकिक प्रभाव पड़ता है। जैसे तीर्थङ्कर के गर्भ में आते ही माता-पिता की सुख-समृद्धि में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगती है । सम्पूर्ण राज्य में अपूर्व शान्ति की लहर आ जाती है और सभी की इच्छित भावनाएँ फलने लगती है। तीर्थङ्कर का जन्म होने पर सकल सृष्टि मंगल गान प्रारंभ कर देती है, प्राणी मात्र के उपकारक प्रभु के अवतरित होने से जन-जीवन में तद्रूप विचारों का उदय होता है और तभी से सामान्य व्यक्ति का जीवन किस प्रकार का होना चाहिए, यह शिक्षा प्राप्त होती है। तीर्थङ्करों की दीक्षा जन मानस में अध्यात्म ज्योति को प्रज्वलित कर सिद्धबुद्ध दशा को प्राप्त करने की प्रेरणा देती है और आत्मा के शुद्ध स्वरूप की अनुभूति का मार्ग प्रशस्त करती है। केवलज्ञान कल्याणक के माध्यम से यथार्थ ज्ञान को जानने एवं देखने का लाइसेंस हासिल होता है तथा परमात्म तत्त्व की उपलब्धि होती है। निर्वाण कल्याणक जहाँ तीर्थङ्कर परमात्मा को स्वयं शाश्वत सुख प्रदान करता है वहीं द्रव्य से किसी एक निगोद के जीव का उद्धार करने में परम निमित्त बनता है। इस प्रकार तीर्थङ्कर पुरुषों के पाँचों कल्याणक आत्म कल्याण करने वाले कहलाते हैं। इन कल्याणकों के अवसर पर तीर्थङ्कर के जीव का कल्याण तो होता ही है, क्योंकि वे स्वयं कल्याण स्वरूप हैं। इसी के साथ दर्शकों का कल्याण भी होता है। इन पाँच के अतिरिक्त अन्य कोई प्रमुख घटना घटित नहीं होती जिससे अनायास ही 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' की उक्ति चरितार्थ हो सकें। इसलिए कल्याणक पाँच ही माने गये हैं।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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