SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 240... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन जाने से काम विकार का सर्वथा अभाव हो जाता है। 13. मिथ्यात्व-दर्शन मोहनीय कर्म की प्रकृति के क्षय हो जाने से मिथ्यात्व नहीं रहता। 14. अज्ञानज्ञानावरणीय कर्म के क्षय हो जाने से अज्ञान का अभाव हो जाता है। 15. निद्रादर्शनावरणीय कर्म के क्षय होने से निद्रा दोष का अभाव हो जाता है। 16. अविरति-चारित्र मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय हो जाने से अविरति दोष का अभाव हो जाता है। 17-18. राग और द्वेष-चारित्र मोहनीय कर्म संबंधी कषाय के क्षय होने से ये दोनों दोष नहीं रहते। __पराश्रयी अपाय अपगम अतिशय- जहाँ भगवान विचरते हैं, वहाँ चारों दिशाओं में सवा सौ योजन तक प्राय: रोग, महामारी, वैर, अवृष्टि, अतिवृष्टि आदि नहीं होते। 10. ज्ञानातिशय- भगवान केवलज्ञान द्वारा लोकालोक का संपूर्ण स्वरूप जानते हैं। ___11. पूजातिशय- तीर्थङ्कर भगवान सबके पूज्य हैं। इन्हें राजा, वासुदेव, बलदेव, चक्रवर्ती, देवता और इन्द्र सब पूजते हैं अथवा इनको पूजने की अभिलाषा करते हैं। 12. वचनातिशय- तीर्थङ्कर भगवान की वाणी का ऐसा अतिशय होता है कि उनके उपदेश को देव, मनुष्य और तिर्यंच सब अपनी-अपनी भाषा में समझ लेते हैं। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के सारगर्भित प्रयोजन ____ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव जैन समाज का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नैमित्तिक महोत्सव है। इसका आयोजन एक विशाल मेले के रूप में होता है। इसमें देश के कोने-कोने से लाखों जैन भाई और बहिनें एकत्रित होते हैं। लगातार आठ या दस दिनों तक चलने वाले इस विशाल मेले की तैयारियाँ कुम्भ के मेले के समान महिनों पहले से चलती है। यह महोत्सव अन्य लौकिक मेलों के समान आमोद-प्रमोद का मेला नहीं है। यह तो एक विशुद्ध आध्यात्मिक मेला है, जिसके साथ सम्पूर्ण जैन समाज की आस्थाएँ और धार्मिक भावनाएँ जुड़ी रहती हैं। इसमें खान-पान और खेलनेकूदने की प्रधानता नहीं रहती अपितु संयम और तप-त्याग की प्रधानता होती है, वातावरण एकदम आध्यात्मिक बन जाता है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy