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________________ 238... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन युक्त 24. भगवान के शरीर से बारह गुणा ऊँचा अशोक वृक्ष होता है जो छत्र, घंटा और पताकाओं से होता है। 25. मार्ग में चलते समय जंगल के काँटें अधोमुख हो जाते हैं। 26. विहार करते समय सब वृक्ष झुककर प्रणाम करते हैं । 27. विहार के समय आकाश में देव दुन्दुभि बजती हैं। 28. योजन तक वायु अनुकूल बहती हैं। 29. मोर आदि शुभ पक्षी प्रभु को प्रदक्षिणा देकर चलते हैं। 30. सुगन्धित जल की वृष्टि होती है । 31. पाँच वर्ण के पुष्पों की प्रभु के घुटनों तक वृष्टि होती है। 32. दीक्षा लेने के बाद केश, दाढ़ी, मूँछें बढ़ते नहीं हैं। 33. जघन्य से चारों जाति के करोड़ों देवता सेवा में ही रहते हैं। 34. छहों ऋतुएँ अनुकूल रहती हैं। तीर्थंकर परमात्मा के गुण तीर्थङ्कर भगवान के 34 अतिशयों में से बारह गुण विशिष्ट माने गये हैं। इनमें आठ गुण प्रातिहार्य और चार गुण मूल अतिशय कहलाते हैं। इस प्रकार अरिहन्त प्रभु बारह गुणों से युक्त होते हैं। यह विवरण संक्षेप में निम्नानुसार हैआठ प्रातिहार्य 1. अशोकवृक्ष - जहाँ भगवान का समवसरण रचा जाता है, वहाँ उनकी देह से बारह गुणा बड़ा अशोक वृक्ष (आसोपालव के वृक्ष) की रचना देवता करते हैं। उसके नीचे भगवान बैठकर देशना देते हैं। 2. सुरपुष्पवृष्टि - एक योजन प्रमाण समवसरण की भूमि में देवों द्वारा पंच वर्ण वाले सचित्त पुष्पों की घुटने परिमाण वृष्टि करते हैं। किन्तु भगवान के अतिशय से उनके जीवों को किसी प्रकार की पीड़ा नहीं होती । 3. दिव्य ध्वनि - भगवान की वाणी को देवता मालकोश राग, वीणा, बंसी आदि स्वर से पूरते हैं। 4. चामर- समवसरण में देवता रत्न जड़ित स्वर्ण की डंडी वाले चार श्वेत चामर से भगवान को बींझते हैं। 5. आसन- भगवान के बैठने के लिये देवता रत्नजड़ित सिंहासन की रचना करते हैं।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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