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________________ पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ... 235 6. यथाशक्ति त्याग- अपनी अल्पतम शक्ति को भी छिपाये बिना आहार, औषधि, अभय और उपकरण आदि का दान देना यथाशक्ति त्याग है। 7. यथाशक्ति तप- अपनी शक्ति को छिपाये बिना मोक्षमार्ग में उपयोगी तप का अनुष्ठान करना यथाशक्ति तप है। 8. साधु समाधि - तपोनिष्ठ साधुओं के ऊपर आगत आपत्तियों का निवारण करना तथा ऐसा प्रयत्न करना जिससे वे स्वस्थ रहें, यह साधु समाधि है। 9. वैयावृत्य करण- गुणी पुरुषों की समाधि में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने का प्रयत्न करना एवं उनकी सेवा-शुश्रूषा करना वैयावृत्य करण है। 13. अरिहन्त भक्ति, आचार्य भक्ति, बहुश्रुत भक्ति, प्रवचन भक्तिअरिहन्त, आचार्य, बहुश्रुत और प्रवचन - इन चारों में शुद्ध निष्ठा पूर्वक अनुराग रखना अरिहन्त भक्ति, आचार्य भक्ति, बहुश्रुत भक्ति और प्रवचन भक्ति है । 14. आवश्यक अपरिहाणि - छहों आवश्यक क्रियाओं को निश्चित समय पर करना आवश्यक अपरिहाणि है। 15. मार्ग प्रभावना- अपने ज्ञान और आचरण से मोक्षमार्ग का प्रचारप्रसार करना मार्ग प्रभावना है। 16. प्रवचन वत्सलत्व - जैसे गाय बछड़े पर स्नेह रखती है, वैसे ही साधर्मीजनों से निश्छल - निष्काम स्नेह रखना प्रवचन वत्सलत्व है। उक्त सोलह भावनाएँ तीर्थङ्कर पद प्राप्ति का कारण हैं। इन सोलह भावनाओं में सभी अथवा उनमें से कुछ के होने पर तीर्थङ्कर प्रकृति का बन्ध होता है, किन्तु इनमें दर्शन विशुद्धि का होना अनिवार्य है। तीर्थङ्कर प्रकृति के बन्ध का नियम तीर्थङ्कर प्रकृति का बन्ध चौथे गुणस्थान से लेकर प्रथमोपशम सम्यक्त्व, द्वितीयोपशम सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व अथवा क्षायिक सम्यक्त्व के साथ अपूर्वकरण गुणस्थान के छठवें भाग तक मनुष्य गति में होता है। तीर्थङ्कर प्रकृति का बन्ध केवली भगवान के पादमूल में होता है। जिसके मनुष्य गति या तिर्यञ्च गति का पहले ही बन्ध हो चुका हो, उसको तीर्थङ्कर प्रकृति का बन्ध नहीं होता है। (गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 336) देव गति एवं नरक गति से आये जीव ही तीर्थङ्कर होते हैं । तीर्थङ्कर प्रकृति का बन्ध होने पर फिर सम्यक्त्व का
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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