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________________ अध्याय- 10 पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण सभी धर्मों में आराध्य और आराधक के बीच एक विशेष सम्बन्ध की चर्चा की गई है। भक्त और भगवान के बीच रहा हुआ यही सेतु आत्मा को परमात्म अवस्था की प्राप्ति करवाता है । परन्तु यह एक अनुभूत तथ्य है कि मन में किसी के लिए पूज्य भाव तभी उत्पन्न हो सकता है जब उसके प्रति मन में श्रद्धा हो और श्रद्धा का जागरण तभी होता है जब उसके विषय में यथार्थ जानकारी हो । तीर्थंकर परमात्मा का प्रत्येक जीव पर असीम उपकार है क्योंकि उन्होंने स्व अनुभूत एवं आचरित सत्य मार्ग का प्रवर्तन किया है, जिस पर चलकर यह जीव शुद्ध स्वरूप के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। आजकल की आधुनिक जीवनशैली में प्रायः लोग धार्मिक या ऐतिहासिक जानकारी से अनभिज्ञ होते हैं। परमात्मा के विषय में सम्यक जानकारी न हो तो अंतकरण में श्रद्धा का पुट कैसे उभर सकता है? जो एक भक्त के मन में होना चाहिए। इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए दीर्घदर्शी आचार्यों ने प्रतिष्ठा आदि के समय पंचकल्याणक महोत्सव का विधान किया। जिससे नगरजनों के मन में परमात्मा के प्रति बहुमान भाव, अनुराग भाव उत्पन्न हो सके और वे आत्म कल्याण का मार्ग प्राप्त कर सकें। तीर्थंकर : एक परिचय जैन परम्परा के अनुसार जैन धर्म अनादि से है, जो समय-समय पर उत्पन्न होने वाले तीर्थङ्करों द्वारा प्रवर्तित होता रहा है। इस कालचक्र में जैन धर्म का प्रवर्तन प्रथम तीर्थङ्कर भगवान ऋषभदेव ने किया। तीर्थङ्कर ऋषभदेव का काल निर्णय वर्तमान समय गणना के अनुसार नहीं किया जा सकता। ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं में ऋषभदेव का सम्मान पूर्वक स्मरण किया गया है। भागवत 5-2-6 में भी जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव का उल्लेख है, पुराण साहित्य में भी ऋषभदेव का उल्लेख है। प्राचीन बौद्ध ग्रंथों में भी ऋषभदेव को जैन धर्म का प्रचारक कहा गया है। इसके अतिरिक्त हड़प्पा-मोहनजोदड़ों की खुदाई से
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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