SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनबिम्ब निर्माण की शास्त्र विहित विधि ...183 शिल्पकार के अन्तर्मन में भी उत्पन्न करने का प्रयत्न करना चाहिए।14 शास्त्रकारों ने ऐसे मानसिक दोहद-मनोरथ तीन प्रकार के बतलाये हैं1. प्रभु की बाल्यावस्था 2. युवावस्था और 3. प्रौढ़ावस्था। वृद्धावस्था की मूर्तियाँ नहीं बनाई जाती क्योंकि तीर्थंकर पुरुषो में साधारण मनुष्यों जैसा परिवर्तन नहीं दिखता है। इसलिए उपर्युक्त तीनों अवस्थाओं के भाव निर्माता स्वयं के मन में उत्पन्न कर उसी प्रकार की सामग्री प्रदान करते हुए शिल्पी के भीतर भी प्रभु की तीनों अवस्थाओं के भाव प्रकट करें, जिससे मूर्ति गढ़ते-गढ़ते बिंब में भी वैसे ही भावों का आरोपण हो।15 बाल्यावस्था के मनोरथ उत्पन्न करने के लिए अनेक खिलौने देकर शिल्पी का चित्त बालक की भाँति करें। युवा और मध्यम वय के मनोरथ प्रकट करने के लिए अनेक प्रकार के वस्त्र तथा खाने-पीने की अद्भुत सामग्रियों का अर्पण करें, जिससे शिल्पी के मन में युवावस्था और मध्यम वय के सर्जनात्मक विचार पैदा हों। इस रीति से शिल्पी के मन में उत्पन्न होते भाव मर्ति में भी आरोपित होने से भक्तों को प्रभु के दर्शन की अनुभूति तीनों रूपों में होने लगती है। __ आजकल कई नगरों में जिन प्रतिमाएँ प्रातः, मध्याह्न और सन्ध्या इन तीन सन्धि कालों में तीन रूप करती हैं। इसके पीछे बिंब निर्माण के समय उसमें आरोपित किये गये अन्तर्भाव ही कारणभूत हैं। जिस पाषाण या धातु के द्वारा मूर्ति का निर्माण करना हो उसके ऊपर तीर्थंकर भगवान के नाम के आगे 'ऊँ नमः' पद अवश्य लिखें। जैसे भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा भरवानी हो तो 'ॐ नमः ऋषभदेवाय' यह मंत्र लिखें। उसके बाद ही मूर्ति गढ़ने का कार्य प्रारम्भ करें। ऊँकार पद जोड़ने से आलोक संबंधी और मोक्ष संबंधी समस्त फलों की प्राप्ति होती है।16 ___यह सर्वमान्य सत्य है कि सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास में प्रार्थनास्थलों का विशेष स्थान है। इन स्थानों की प्रभावकता एवं आकर्षण का मुख्य कारण है वहाँ का तनाव रहित वायुमण्डल एवं प्रशांतभावयुत निष्काम प्रार्थना आलंबन। फिर वह चाहे जिस रूप में हो। आलंबन की महत्ता को सर्वत्र स्वीकारा गया है। जिन प्रतिमा, आराधना का प्रमुख आधार है अत: उसके निर्माण में विवेक एवं सावधानी रखना तथा शास्त्र विहित नियमों का पालन करना
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy