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________________ जिनबिम्ब निर्माण की शास्त्र विहित विधि ...181 सर्वप्रथम उस शिला पर सहदेवी, विष्णुक्रान्ता, शतावरी आदि सप्तौषधियों का चूर्ण मिश्रित जल डालें। __उसके बाद जातीफल, लवंग, बिल्ब आदि पाँच फलौषधियों के चूर्ण मिश्रित जल का क्षेपण करें। उसके पश्चात पलाश, उदुम्बर, अश्वत्थ, न्यग्रोध, शमी-इन पाँचों की छाल से युक्त जल का सिंचन करें। तदनन्तर मूलाष्टक नाम की औषधियों का चूर्ण मिश्रित जल डालें। उसके बाद पत्थर को सौषधियों से अभिसिंचित करें। फिर उसके ऊपर अगर, तगर, चन्दन, कपूर, हरताल, हिंगुल, हेम आदि अष्टगंध के द्रव्यों का लेप करें। तदनन्तर जायफल, हल्दी, कपूर आदि मिलाकर उसका उबटन करें। यदि पत्थर के अन्दर दाग आदि हों तो इन औषधियों के स्पर्श से प्रकट हो जाते हैं। प्राचीन युग में समान वर्ग की औषधियों को हाथ से पीसा जाता था। फिर उन्हें मिलाकर उसी का मूर्ति पर उबटन करते थे। उबटन को कुछ समय तक ऐसे ही रखते थे। तब यथार्थ में भीतर के दोष दूर होते थे और चमक बढ़ती थी। आजकल लोक प्रवाह रूप से एक बाल्टी पानी में अमुक-अमुक प्रकार की औषधियों के चूर्ण को मिलाकर अभिषेक कर लेते हैं, जो विधिवत प्रणाली नहीं है। वास्तुसार प्रकरण के अनुसार शिला परीक्षण हेतु निर्मल कांजी के साथ बेल वृक्ष के फल की छाल का उबटन करना चाहिए, इससे भीतरी दाग स्पष्ट हो जाते हैं।11 पंडित मन्नूलाल जैन प्रतिष्ठाचार्य की हस्त डायरी के अनुसार पानी के साथ छिला हुआ गोटा रगड़ने से रेखाओं की जानकारी हो जाती है। वर्तमान में क्वाथ औषधियाँ उपलब्ध न होने पर सौषधि से शुद्धि करते हैं। पूर्व काल में शास्त्रानुसार स्वयं खड़े रहकर प्रतिमा बनवायी जाती थी। आज तैयार की हुई प्रतिमा ली जाती है। वस्तुतः परीक्षणपूर्वक प्रतिमा का निर्माण करवाना चाहिए। ___ यदि हृदय, मस्तक, कपाल, दोनों स्कन्ध, दोनों कान, मुख, पेट, पीठ, दोनों पैर आदि के भागों-उपभागों में नीले आदि रंग की रेखा हो तो प्रतिमा निर्माण के लिए वह शिला निषिद्ध कही गई है। यदि अन्य अंगों पर रेखा हो तो प्रतिमा निर्माण के लिए मध्यम है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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