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________________ जिनबिम्ब निर्माण की शास्त्र विहित विधि ...177 द्वार की दिशा, गर्भगृह की स्थिति एवं प्रतिमाओं की दृष्टि वास्तुशास्त्र के अनुरूप होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में थोड़ी सी भी लापरवाही हो जाये तो इसके भीषण परिणाम आ सकते हैं। दिशा स्थिति को ध्यान में रखते हए निर्मित किया गया मन्दिर न केवल मनोरम एवं अतिशय सम्पन्न होता है, बल्कि दर्शकों के स्वानुभूति का सशक्त निमित्त भी बनता है। __ प्रवेश द्वार आदि दिशाओं के निर्धारण हेतु विभिन्न उपायों का आश्रय लिया जाता है। इसकी मुख्यत: प्राचीन एवं आधुनिक दो विधियाँ हैं प्राचीन विधि- प्राचीन काल में दिन में दिशा का निर्धारण सूर्योदय और सूर्यास्त के आधार पर किया जाता था तथा रात्रि में ध्रुव तारा अथवा श्रवण नक्षत्र के आधार पर किया जाता था। इन विधियों से मोटे तौर पर दिशाओं का ज्ञान तो हो जाता है। किन्त असावधानी की स्थिति में भल होने की संभावना अधिक रहती है। इसलिए दिन के समय दिशा निर्धारण की प्रचलित विधि शंकू के आधार पर थी। वह निम्न प्रकार से है समतल भूमि पर दिशा निर्धारण करने के लिए सर्वप्रथम दो हाथ के विस्तार का एक वृत्त बनायें। इस वृत्त के केन्द्र बिन्दु पर अंगुल का एक शंकु स्थापन करें। अब उदयार्ध (आधा सूर्य उदय हो चुके तब) शंकु की छाया का अंतिम भाग वृत्त की परिधि में जहां लगे वहां एक चिह्न लगा दें। यही प्रक्रिया सूर्यास्त के समय दोहराएं। इन दोनों बिन्दुओं को केन्द्र से मिला दें। यह पूर्व-पश्चिम दिशाओं का दर्शक है। अब इस रेखा को त्रिज्या मानकर एक पूर्व तथा एक पश्चिम बिन्दु से दो वृत्त बनाएं। इससे पूर्व पश्चिम रेखा पर मत्स्य आकृति बनेगी। इसके मध्य बिन्दु से एक सीधी रेखा इस प्रकार खींचें जो गोल के सम्पात के मध्य भाग लगें और ऊपर के भाग में स्पर्श करे। उसके उत्तर और नीचे के भाग का स्पर्श बिन्दु दक्षिण दिशा है। __ 'अ' बिन्दु पर शंकु स्थापन करें। इस बिन्दु से दो हाथ त्रिज्या का एक वृत्त बनायें। सूर्योदय के समय शंकु की छाया 'क' बिन्दु पर स्पर्श करती है। मध्याह्न के समय 'अ' बिन्दु से निकलती है तथा सूर्यास्त के समय यह 'च' बिन्दु से निकलती है। 'क' से 'अ' को मिलाते हुए 'च' तक एक रेखा खींचें। यह 'च' 'अ' पूर्व दिशा है तथा 'अ' 'क' पश्चिम दिशा है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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