SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनबिम्ब निर्माण की शास्त्र विहित विधि 175 विशिष्ट भक्ति भाव जागृत नहीं हो सकते। श्रावक और शिल्पी के मध्य संघर्ष हो जाए तो सत्कार्य की भी सज्जन-वर्ग में निन्दा होती है और उसके निमित्त प्रवचन हीलना भी होती है। अतएव मूर्ति निर्माता को किसी भी स्थिति में शिल्पी के साथ सद्व्यवहार रखना चाहिए। 7 'शिल्पी का मन खण्डित नहीं करना चाहिए' इस कथन का समर्थन करते हुए आचार्य हरिभद्रसूरि यहाँ तक कहते हैं कि शिल्पी के साथ अप्रीति रखना वास्तविक रूप से भगवान के ऊपर अप्रीति जाननी चाहिए, क्योंकि यह अप्रीति भारी नुकसान का कारण है। इसलिए शिल्पी के प्रति यत्किंचिद भी मन मुटाव नहीं रखना चाहिए | शिल्प निर्माण के अष्टसूत्र शिल्पकार जिनमन्दिर निर्माण आदि के लिए प्रमुख रूप से आठ उपकरणों का सहयोग लेता है। राजवल्लभ के अनुसार उसका वर्णन इस प्रकार है1. दृष्टि सूत्र - इस साधन के द्वारा औजारों के सहयोग के बिना नेत्रों से ही सही नाप-जोख कर लिया जाता है। 2. हस्त सूत्र - यहाँ हस्त से तात्पर्य एक पट्टी से है जो एक हाथ के नाप की होती है। इसके नौ भाग होते हैं। वर्तमान में आधुनिक शिल्पी हाथ या गज का प्रमाण दो फुट तथा अंगुल का प्रमाण एक इंच से करते हैं । 3. मुंज सूत्र - घास की बनी डोरी मुंज कहलाती है। इसके आधार से लम्बीसरल रेखा खींची जा सकती हैं। दीवार को सरल रेखा में बनाने के लिए इसे एक छोर से दूसरे छोर तक बांधा जाता है। 4. कार्पासक सूत्र- कपास से बना हुआ मजबूत सूत कार्पासक कहलाता है। यह अवलम्ब या साहुल ( प्लम्ब लाइन) लटकाने में काम आता है। 5. अवलम्ब सूत्र- इस साधन का तात्पर्य साहुल या प्लम्ब लाइन से है । इसके एक छोर पर लोहे का एक लट्टू होता है जिसे सूत के सहारे लटकाकार दीवार की ऊँचाई अर्थात ऊपर से नीचे की सीधाई नापी जाती है। 6. काष्ठ सूत्र - यहाँ काष्ठ का अभिप्राय त्रिकोण से है। इस साधन के द्वारा कोण बनाने या नापने में सहायता ली जाती है। 7. सृष्टि सूत्र - यहाँ सृष्टि का तात्पर्य फर्श को समतल बनाने में सहयोगी उपकरण से है। इसका स्पिरिट लेवल की तरह उपयोग किया जाता है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy