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________________ जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...119 प्रतिमाओं की स्थापना करें। मान स्तम्भ की प्रतिमाएँ तीर्थंकर के चिह्नों से युक्त होवें। इन प्रतिमाओं का खड्गासन में होना श्रेष्ठ है । 8. मान स्तम्भ पर स्वर्ण कलश आरोहित करें और ध्वजारोहण करें । 9. मान स्तम्भ की प्रतिमाओं के समीप अष्ट मंगल द्रव्यों की स्थापना करें। 10. मान स्तम्भ के नीचे के भाग की जिन प्रतिमाओं एवं मूलनायक प्रतिमा की दृष्टि एक सूत्र में होना चाहिए । 11. मान स्तम्भ की प्रतिमाओं का दैनिक अभिषेक आवश्यक नहीं है । फिर भी यदि वार्षिक समारोह के दिन अभिषेक किया जाये तो अति उत्तम है। 12. मान स्तम्भ का निर्माण मन्दिर से कुछ दूरी पर करें ताकि दृष्टि भेद न हो । 13. मान स्तम्भ के चारों ओर लगभग एक गज ऊँचा परकोटा बनायें। इसी के साथ चारों दिशाओं के मध्य में शोभा युक्त द्वार बनायें। परकोटे को कलाकृतियों से सुसज्जित करें। 14. परकोटे की सजावट के लिये कलापूर्ण अष्ट मंगल, धार्मिक बोध वाक्य, नवकार मंत्र आदि लिखवाना चाहिए। 15. मान स्तम्भ के आस-पास पूर्ण स्वच्छता रखें। 46 जगती प्रासाद निर्मित करने की मर्यादित भूमि अथवा मन्दिर निर्माण हेतु जितने भू-क्षेत्र को ग्रहण किया जाता है उसे जगती कहते हैं। जैसे राजा का सिंहासन स्थापित करने के लिए अमुक स्थान की मर्यादा रखी जाती है वैसे ही प्रासाद निर्मित करने के लिए अमुक भूमि की मर्यादा रखी जाती है। स्पष्टार्थ है कि मन्दिर बनवाने के लिए निर्धारित भूमि पर एक ऊँची चबूतरानुमा पीठ का निर्माण किया जाता है इसे ही जगती कहते हैं। यह पीठ पाषाण निर्मित होती है और मन्दिर निर्माण के लिए आधार का काम करता है। 47 जगत का आकार कैसा हो, जगती का मान क्या हो, ऊँचाई कितनी हो, ऊँचाई में थरो का मान कितना हो इत्यादि जानकारी के लिए प्रासाद मंडन अध्याय-2 का अवलोकन करना चाहिए।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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