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________________ 108... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन 3. गुप्त भंडार कभी दीवारों के अन्दर न बनायें। 4. गुप्त भंडार की पेटी कभी भी दीवार से सटाकर न रखें। 5. गुप्त भंडार सीढ़ी के अथवा बीम के ठीक नीचे न रखें। 6. मन्दिर के बहुमूल्य उपकरण दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य भाग में रखें। आलमारी का मुख उत्तर की ओर खुले । ऐसा करने पर समाज में सद्भाव बढ़ता है और निरन्तर धन की वृद्धि होती है। तलघर मुख्य धरातल के नीचे खुदाई करके कमरा जैसा स्थान तैयार करना उसे तलघर कहा जाता है। वर्तमान युग में कम भूमि क्षेत्र में अधिक क्षेत्रफल निकालने के लिए बहुमंजिली निर्माण के अतिरिक्त नीचे तलघर बनाये जाते हैं। प्राचीन युग में विधर्मियों के आक्रमण से रक्षा करने हेतु तलघर बनाये जाते थे ताकि संकट के समय जिन प्रतिमाओं को संरक्षित किया जा सके। मध्यकाल में इसी पद्धति ने जिन संस्कृति को बचाया है। आज भी भूमि खनन के समय यत्र तत्र प्राचीन जिनबिम्ब और भग्न जिनालय मिलते रहते हैं। तलघर का निर्माण अत्यंत आवश्यक होने पर ही करना चाहिए। सिर्फ अधिक जगह निकालने के लिये निरुद्देश्य तलघर नहीं बनाना चाहिए । यदि अपरिहार्य स्थिति में तलघर बनाना ही इष्ट हो तो उस समय निम्न निर्देशों का पालन करते हु केवल निर्धारित दिशाओं में बनाना चाहिए। 1. तलघर ईशान दिशा में बनायें। यदि कुछ दीर्घाकार अपेक्षित हो तो उत्तर या पूर्व तक बना सकते हैं किन्तु किसी भी स्थिति में आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य एवं मध्य में तलघर नहीं बनायें । 2. तलघर का आकार आयताकार अथवा वर्गाकार ही होना चाहिए। 3. कोई भी तलघर ऊपर की वेदियों के ठीक नीचे नहीं आना चाहिए। 4. तलघर के फर्श का ढलान ईशान, पूर्व या उत्तर की ओर ही होना चाहिए। 5. किसी भी स्थिति में पूरे जिनालय के नीचे तलघर नहीं बनाना चाहिए। 6. तलघर में उतरने की सीढ़ियों का उतार दक्षिण से उत्तर अथवा पश्चिम से पूर्व होना चाहिए। 7. यदि सम्भव हो तो दक्षिणी दीवाल की तरफ से सीढ़ियाँ बनाना चाहिए ।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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