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________________ जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...103 अपराजित पृच्छासूत्र के अनुसार यदि जिन मंदिर पूर्व-पश्चिम दिशा में बना हो तो अभिषेक जल का निर्गम द्वार उत्तर में निकालना चाहिए। यदि जिनमंदिर उत्तर-दक्षिण दिशा में बनाया गया हो तो नाली का मार्ग बायीं ओर अथवा दाहिनी ओर रखना चाहिए।38 प्रासाद मंजरी के अनुसार दक्षिणाभिमुख प्रासाद में जल निर्गम की नाली बायीं ओर रखें तथा उत्तराभिमुख प्रासाद में अभिषेक जल का प्रवाह दायीं ओर रखें।39 मण्डप में मूलनायक प्रतिमा के बायीं ओर स्थापित देवों के अभिषेक जल की नाली बायीं ओर निकालनी चाहिए तथा मण्डप में मूलनायक प्रतिमा के दायीं ओर स्थापित देवों के अभिषेक जल की नाली दायीं ओर निकालनी चाहिए। जगती के चारों ओर जल निकालने की नाली बनाई जा सकती है।40 ___जगती की ऊँचाई में एवं मण्डोवर (भित्ति) के छज्जे के ऊपर चारों दिशाओं में नाली (जल निर्गम द्वार) बनानी चाहिए।41 आरती एवं अखण्ड दीपक प्रभु दर्शन एवं पूजा विधि का एक आवश्यक अंग आरती भी है। मन्दिर में मूलनायक भगवान की प्रतिमा के निकट आग्नेय दिशा में आरती रखनी चाहिए तथा अखण्ड दीपक भी इसी दिशा में स्थापित करना चाहिए। शिल्प रत्नाकर के अनुसार जिनालय के दाहिने भाग में दीपालय बनाना शुभकारी, यशवर्धक एवं सुखप्रदाता है जबकि बायें भाग में निर्मित दीपालय यश एवं सुख का हरण करता है।42 स्नान गृह पूजा करने के पूर्व शरीर शुद्धि परमावश्यक है। यदि घर से मन्दिर दूर हों तो. वहाँ के बाह्य परिसर में स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनने चाहिए। सामान्यतया मन्दिर के पूर्व, उत्तर अथवा ईशान भाग में स्नानगृह का निर्माण करना चाहिए। यदि संभव न हो तो वायव्य कोण में भी स्नान गृह बनाया जा सकता है। स्नानगृह में जल का प्रवाह उत्तर अथवा ईशान में रखना उपयुक्त है अन्य दिशाओं में अनिष्टकारी माना गया है। आचार्य उमास्वाति के मतानुसार पूर्व दिशा की ओर मुख करके स्नान करें, पश्चिम की ओर मुख करके दन्त धावन करें, उत्तराभिमुख होकर पूजा के वस्त्र धारण करें तथा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके पूजा विधि करें।43
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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