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________________ 76... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन । चन्द्र । मंगल मगल लग्न में भाव से सूर्य | ग्यारहवें लग्न में | लाभ बारहवें लग्न में व्यय लाभ लाभ व्यय लाभ व्यय व्यय । शुक्र लाभ व्यय लग्न में भाव से गुरु | शनि पहले लग्न में | धर्म, अर्थ लाभ | पुत्र लाभ | दरिद्रता दूसरे लग्न में धर्म सिद्धि यथेष्ट पूर्ति विघ्नोत्पत्ति तीसरे लग्न में अभीष्ट सिद्धि अभीष्ट सिद्धि विलम्ब से सिद्धि चौथे लग्न में राज सम्मान भूमि लाभ सर्वस्व नाश पाँचवें लग्न में मित्र, धन लाभ पुत्र सुख बंधु नाश छठे लग्न में यंत्रणा विद्या लाभ शत्रु नाश सातवें लग्न में गज प्राप्ति धन लाभ अंगहीनता का भय आठवें लग्न में | विजय आपसी कलह | रोग भय नौवें लग्न में विद्या लाभ, आनंद विजय धर्म दोष दशवें लग्न में परम सुख शय्यासन लाभ | कीर्ति नाश ग्यारहवें लग्न में | लाभ लाभ |बारहवें लग्न में व्यय व्यय नक्षत्र शुद्धि- आचार्य जयसेन के प्रतिष्ठापाठ के अनुसार बुधवार को मूल, आश्लेषा, विशाखा तथा मंगलवार को तीनों पूर्वा, मघा, भरणी नक्षत्र हो तो इस दिन नींव का खनन करना श्रेष्ठ है। ये अधोमुख संज्ञक नक्षत्र हैं।11 गुरुवार को मृगशिरा, अनुराधा, आश्लेषा, पूर्वाषाढ़ा, शुक्रवार को चित्रा, धनिष्ठा, विशाखा, अश्विनी, आर्द्रा, शतभिषा तथा बुधवार को अश्विनी, उत्तरा, हस्त और रोहिणी नक्षत्र हो तो इन दिनों में जिनमंदिर निर्माण का कार्य प्रारम्भ करना शुभ है।12 __ मास शुद्धि- आचार्य जयसेन प्रतिष्ठापाठ के अनुसार चैत्र महीने को छोड़कर मिगसर, पौष, वैशाख, श्रावण आदि शेष महीनों में, सूर्य के उत्तरायण महीनों में तथा व्यतिपात आदि योग रहित शुभ दिनों में जिनालय का कार्य शुरू करना श्रेष्ठ है।13 तिथि शुद्धि- जिनालय आदि के नव निर्माण का कार्य आरंभ करने के लिए रिक्ता तिथि, अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या को छोड़कर शेष सभी तिथियाँ
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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