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________________ 74... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन विपक्षियों के स्वामित्व में चला जाता है। लग्न में उच्च का सूर्य, उच्च का गुरु और 11वें भाव में उच्च का शनि हो तो मन्दिर की आयु 1000 वर्ष होती है। ___ मन्दिर निर्माण आरम्भ के समय उच्च राशि के शुभ ग्रह यदि लग्न अथवा केन्द्र में हो तो मन्दिर की आयु 200 वर्ष की होती है।' लग्न-ग्रह संबंधी मन्दिर का शुभाशुभ विचार 1. मन्दिर निर्माण आरम्भ के समय यदि कर्क में चन्द्रमा हो, केन्द्र में गुरु हो और अपने मित्र की राशि या उच्च की राशि में अन्य ग्रह हो तो उस मन्दिर में चिर काल तक लक्ष्मी निवास करती है। 2. अश्विनी, विशाखा, चित्रा, शतभिषा, आर्द्रा, पुनर्वस और धनिष्ठा इन नक्षत्रों में से किसी में शुक्र हो तथा उसी नक्षत्र में शुक्रवार को मन्दिर निर्माण आरम्भ हो तो वह सम्पन्न बना रहता है। 3. रोहिणी, हस्ता, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा, अश्विनी और अनुराधा नक्षत्रों में से किसी में बुध हो और उसी नक्षत्र में बुधवार को मन्दिर निर्माण किया जाए तो धन एवं पुत्र सुख मिलता है। 4. पुष्प, तीनों उत्तरा, मृगशिरा, श्रवण, आश्लेषा, पूर्वाषाढ़ा- इन नक्षत्रों में से किसी में गुरु हो और उसी दिन गुरुवार हो तो इस दिन निर्माण प्रारंभ किया गया मन्दिर पुत्र एवं राज्य सुख देता है। योग शुद्धि- मन्दिर निर्माण का कार्य प्रारम्भ करते समय ग्रह लग्नेश आदि निम्न स्थितियों में हो तो कुयोग होता है और उसका निम्नोक्त फल प्राप्त होता है1. एक भी ग्रह शत्रु के नवांश में होकर सप्तम में या दशम में हो तथा लग्न का स्वामी निर्बल हो और उस समय मन्दिर का आरंभ करे तो मन्दिर अल्प समय में ही विपक्षियों के हाथों में चला जाता है। 2. पाप ग्रहों के मध्य में लग्न हो और शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हो तथा आठवें भाव में शनि हो तो मन्दिर शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। 3. मन्दिर आरंभ के समय यदि दशा का स्वामी और लग्न का स्वामी निर्बल हो तथा सूर्य अनिष्ट में हो तो मन्दिर शीघ्र नष्ट हो जाता है। 4. मन्दिर आरंभ के समय लग्न में क्षीण चन्द्रमा हो तथा अष्टम मंगल हो तो
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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