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________________ जिनपूजा का सैद्धान्तिक स्वरूप एवं उसके प्रकार... ...5 1. काययोग प्रधान पूजा - जिनपूजा में जब काया प्रधान बने तब उसे काययोग प्रधान पूजा कहा जाता है। यह पूजा विघ्न की शान्ति के लिए की जाती है। इस पूजा में श्रेष्ठ पुष्प, सुगन्धित माला आदि जिन प्रतिमा के ऊपर चढ़ाए जाते हैं। 2. वचनयोग प्रधान पूजा - पूजा में जब वचन प्रधान हो तो उसे वचन प्रधान पूजा कहा जाता है। यह पूजा अभ्युदय में हेतुभूत बनती है। इस पूजा वचन के द्वारा अन्य क्षेत्रों से श्रेष्ठ पुष्प आदि सामग्री मंगवाई जाती है। में 3. मनोयोग प्रधान पूजा - जब पूजा करते हुए मन की प्रधानता हो तो उसे मनोयोग प्रधान पूजा कहा जाता है। यह पूजा निर्वाण प्राप्ति में निमित्त बनती है। इस पूजा में श्रेष्ठ कुसुम आदि समस्त सामग्री मन से ही संग्रहित की जाती है। शंका- अधिकांश लोग शंका करते हैं कि जिनपूजा हेतु स्नान आदि करने में जीव विराधना होती है तो फिर वह दोषपूर्ण क्यों नहीं है ? समाधान- स्नान आदि कार्यों में होने वाली जीव विराधना से लगने वाले दोषों की अपेक्षा जिनपूजा के समय उत्पन्न होने वाले परिणाम या शुभ अध्यवसाय अधिक लाभकारी होते हैं। यह अनुभवसिद्ध है। कई तर्क बुद्धि वाले लोगों का कहना है कि स्नान आदि कार्यों में जीव विराधना होती है। इसके द्वारा भगवान पर कोई उपकार नहीं होता और वे कृतकृत्य भी नहीं होते, अतः ऐसी पूजा करना व्यर्थ है। आचार्य हरिभद्रसूरि पंचाशक प्रकरण में इसका समाधान करते हुए कहते हैं कि पूजा करने से हम भगवान के ऊपर किसी भी प्रकार का उपकार आदि नहीं करते फिर भी वह मंत्र आदि के समान लाभकारी है। भगवान के कृतकृत्य होने से नहीं अपितु गुणप्रकर्ष के द्वारा उनकी पूजा सार्थक होती है। इसी कारण संसार में आरंभ करने वाले जीवों के लिए जिनपूजा निष्प्रयोजन नहीं है। इस संबंध में कूप दृष्टांत का वर्णन है। कुँआ खोदते समय अथक परिश्रम, कीचड़ आदि से मलिन होने, थकान आदि अनेक कष्टों को सहन करने के बाद तृषाशमन, मल आदि से निवृत्ति, दीर्घ सुख की प्राप्ति इस तरह अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। 28 शंका- यहाँ कई लोग तर्क करते हैं कि यदि जिनपूजा हेतु स्नान आदि क्रियाएँ दोषकारी नहीं हैं तो फिर साधु को भी द्रव्यपूजा का अधिकारी मानना चाहिए ?
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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