SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्मxlix कर्म बन्धन के मुख्य कारण रूप आशातनाओं के स्वरूप एवं विविध प्रकारों का उल्लेख किया है। साथ ही श्रावक वर्ग द्वारा सावधानी रखने योग्य मुख्य स्थानों का भी वर्णन किया है। छठवां अध्याय जिनपूजा में उपयोगी उपकरणों के स्वरूप का परिचय करवाते हुए आगमकाल से अब तक हुए विकास एवं ह्रास की चर्चा करता है। इस खण्ड के सातवें अध्याय में जिनपूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता को सिद्ध करते हुए उसके अनुभूतिजन्य रहस्यों को उजागर किया है। इसके अन्तर्गत जिनपूजा के आध्यात्मिक, शारीरिक एवं मानसिक प्रभावों का वर्णन है। इसी के साथ इस अध्याय में जिनपूजा सम्बन्धी विविध चरण जैसेनिसीहि, प्रदक्षिणा, तिलक आदि की रहस्यभूत चर्चा की गई है। जिन मंदिर की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक तात्त्विकता को उजागर करते हुए कुछ मौलिक विषय जैसे कि गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर सिंह की मुखाकृति क्यों? घंटनाद, शंखनाद, आरती आदि का प्राकृतिक प्रभाव, प्रार्थना के प्रभाव इत्यादि का स्वरूप वर्णन किया है। इस अध्याय में त्रिकाल पूजा का महत्त्व एवं विविध पक्षीय अध्ययन कर हुए उसकी प्रासंगिकता को सिद्ध किया है। साथ ही अष्टमंगल के महत्त्व का भी वर्णन किया है। आठवें अध्याय में जिनपूजा की प्रामाणिकता को ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भों के आधार पर सिद्ध किया है। यह अध्याय आलम्बन के स्वरूप एवं महत्त्व को दर्शाते हुए जिनप्रतिमा को सर्वश्रेष्ठ आलम्बन रूप सिद्ध करता है। इस अध्याय में आगम युग से अब तक प्राप्त जिन पूजा के प्रामाणिक संदर्भ प्रस्तुत किए गए हैं। नौवां अध्याय सात क्षेत्रों का समीक्षात्मक एवं सारगर्भित विवेचन करता • है। इसमें सात क्षेत्रों का सामान्य परिचय देते हुए तद्विषयक विविध शंकाओं का समाधान किया गया है। विशेषतः इसमें सात क्षेत्र विषयक विविध चढ़ावों को सारणी रूप में प्रस्तुत करते हुए उस राशि का उपयोग किस क्षेत्र में कर सकते हैं ? इसका प्रामाणिक विवेचन किया है। इस सम्बन्ध में तपागच्छ परम्परावर्ती आचार्य श्री कीर्तियशसूरिजी म.सा. एवं खरतरगच्छ परम्परावर्ती में उपाध्यायश्री मणिप्रभसागरजी एवं मुनि श्री पीयूषसागरजी म.सा. के मन्तव्य को प्रस्तुत किया है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy