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________________ 378... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... शंका- इस आधुनिक युग के मंदिरों में Lift, Cooler, आधुनिक China Lighting आदि का प्रयोग होना चाहिए या नहीं ? समाधान- आज के सुविधावादी दृष्टिकोण एवं जीवनशैली के कारण मंदिर परिसर भी आधुनिक सुख सुविधाओं से युक्त बनाए जाने लगे हैं। शास्त्रोक्त नियमों का पालन तो नहीवत ही होता है । जहाँ घर से मंदिर तक पैदल आने का विधान है वहाँ अब बिना संकोच के वाहनों का प्रयोग एवं मंदिर में भी ऊपर चढ़ने हेतु लिफ्ट का प्रयोग होने लगा है यह उचित नहीं है। वृद्ध, बीमार या ऊपर चढ़ने में असक्षम वर्ग की अपेक्षा यह सुविधाएँ उचित भी हो तो भी इसका प्रयोग आने वाले हर व्यक्ति के द्वारा लगभग किया जाता है। अतः इस विषय में औचित्य-अनौचित्य का विचार आप स्वयं करें। ऐसी सुविधाओं का यदि कोई चार्ज रख दिया जाए तो उनका दुरूपयोग होने से बचा जा सकता है। मंदिर का वातावरण जितना शांत एवं भौतिक ताम-झाम से रहित हो वह उतने ही अधिक शुभभावों की उत्पत्ति में सहायक बनता है। China Lights आदि के प्रयोग से वातावरण दूषित होता है तथा Short Circuit आदि का भय भी बना रहता है। अधिक सुविधाओं के द्वारा भक्ति में वृद्धि नहीं होती अपितु प्रमाद बढ़ता है अत: ऐसे साधनों का प्रयोग नहीं करना ही अधिक लाभकारी है। शंका- बड़े-बड़े मंदिरों में जहाँ दो-तीन तल्ले के मंदिर होते हैं वहाँ प्रत्येक भाग में अलग-अलग स्नात्र पूजा करनी चाहिए या एक सामूहिक स्नात्र पूजा करनी चाहिए? इसी के साथ सामूहिक भक्ति आयोजनों के समय भी अपनी क्रिया को प्रमुखता देना कितना उचित है ? समाधान- यदि मंदिर में आने वाले श्रावकों की संख्या अच्छी हो तथा अलग-अलग स्नात्र पूजा करने से एक-दूसरे को व्यवधान उपस्थित नहीं होता हो तो अलग-अलग स्नात्र पूजा करने में कोई हर्ज नहीं है। यदि मात्र अपनेअपने स्थान के राग से या अहंभाव की पुष्टि के लिए भिन्न-भिन्न स्नात्र पूजा की जाती है तो वह गलत है। एक ही मंदिर में एक साथ तीन चार जगह स्नात्र पूजा होने से अन्य दर्शन करने वालों को व्यवधान उपस्थित होता है। जो जहाँ की स्नात्र पूजा करते हैं वे वहीं की करेंगे अन्य जगह की नहीं। यदि कोई यह सोचे कि हम अपना स्थान क्यों छोड़ें? तो यह आग्रह बहुत गलत है । यदि कभी कोई महोत्सव या सामुदायिक आयोजन हो तो अपना काम पहले या बाद में करके
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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