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________________ सात क्षेत्र विषयक विविध पक्षों का समीक्षात्मक अनुशीलन... 355 समाज उत्थान के कार्य उन्हीं मर्यादाओं में रहकर करने चाहिए। चढ़ावा बोलने का अधिकार मात्र श्रावकों को ही होता है । साधु प्रेरणा दे सकते हैं किन्तु चढ़ावा बोल नहीं सकते। इससे कई बार श्रावकों के मन में उनके प्रति हीन भाव भी उत्पन्न हो सकते हैं। श्रावक यदि राशि जमा न कर पाए तो साधु महादोष का भागी एवं जन हीलना का कारण बन सकता है। शंका- चढ़ावा लेने वाले श्रावक में कोई योग्यता होना आवश्यक है ? तथा इस विषय में कोई शास्त्रोक्त उल्लेख प्राप्त होते हैं ? समाधान- अब तक ऐसा कोई उल्लेख पढ़ने में नहीं आया है। हाँ ! पर उसमें प्रयुक्त राशि सद्मार्ग से न्याय नीतिपूर्वक अर्जित होनी चाहिए तथा उस राशि का भुगतान उसी समय कर देना चाहिए। जीत व्यवहार में जिनशासन का प्राथमिक विधान है चढ़ावा । सुज्ञ श्रावकों द्वारा देव-गुरु-धर्म की भक्ति, बहुमान आदि के लिए तथा श्रावक समुदाय में एक निश्चित लाभार्थी तैयार करने के लिए इस विधान का गुंफन हुआ होगा ऐसी विचारणा है। जैन शास्त्रों में वर्णित सात क्षेत्रों की भक्ति एवं तत्सम्बन्धी द्रव्य वृद्धि के लिए यह एक सम्यक विधान है। इसे बोली, चढ़ावा, नकरा आदि विविध नामों से जाना जाता है। विविध क्षेत्र सम्बन्धी चढ़ावों से एकत्रित हुआ द्रव्य किस क्षेत्र में प्रयोग किया जा सकता है, यह एक विषम प्रश्न है ? इस विषय में विभिन्न जैन परम्पराओं में ही अनेक प्रकार के मतभेद देखे जाते हैं। यहाँ पर जैन शासन की मुख्य तीन परम्पराओं का तत्सम्बन्धी मन्तव्य दिया जा रहा है। अन्य परम्पराओं का प्रामाणिक विस्तृत वर्णन प्राप्त न होने से तद्विषयक उल्लेख नहीं किया है। श्रावक वर्ग प्रस्तुत सारणी के माध्यम से विविध बोलियों की राशि उपयोग के विषय में समुचित निर्देशन प्राप्त कर सकेगा।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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