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________________ सात क्षेत्र विषयक विविध पक्षों का समीक्षात्मक अनुशीलन ...351 द्रव्य का प्रयोग उनके लिए नहीं हो सकता इसलिए उनके ऊपर के क्षेत्र में उपयोग करने रूप देवद्रव्य में इसका प्रयोग होता है। शंका- ज्ञान द्रव्य साधु-साध्वी से ऊपर का क्षेत्र है तो फिर उनके अध्ययन आदि हेतु ज्ञान द्रव्य का प्रयोग कैसे हो सकता हैं? समाधान- जिस प्रकार देवद्रव्य से निर्मित जिनालय पूजन, महापूजन आदि अनुष्ठानों के माध्यम से सम्यग्दर्शन आदि गुणों में वृद्धि करता है उसी प्रकार ज्ञान द्रव्य भी पुस्तक आदि के माध्यम से ज्ञानादि गुणों के वर्धन में सहयोगी बनता है। पुस्तक प्रकाशन आदि में ज्ञान खाते का प्रयोग होता है वह द्रव्यश्रुत है। वहीं अध्ययनशील साधु-साध्वी को जो श्रुतज्ञान प्राप्त होता है वह भावश्रुत है। यह भावश्रुत स्व एवं जन-जागरण में उपयोगी बन सकता है अत: साधु-साध्वी को पढ़ाने वाले अजैन पण्डितों को पगार देने हेतु ज्ञान द्रव्य का उपयोग किया जा सकता है। जीर्ण ग्रन्थों के उद्धार आदि में भी आवश्यकता अनुसार इस द्रव्य का प्रयोग हो सकता है। द्रव्यश्रुत के समान ही भावश्रुत भी वंद्य है अतः साधुसाध्वी के अध्ययन में ज्ञान द्रव्य का उपयोग हो सकता है। शंका- श्रावक-श्राविका के क्षेत्र संबंधी राशि क्या कहलाती है? और इसका उपयोग कहाँ हो सकता है? समाधान- उदारमना श्रावकों के द्वारा भक्तिभावपूर्वक साधर्मिक उत्कर्ष एवं भक्ति हेतु दी जाने वाली राशि साधारण द्रव्य कहलाती है। साधर्मिक से यहाँ तात्पर्य सम्यकदृष्टि तथा अणुव्रतधारी श्रावक-श्राविकाओं से है। साधर्मिक द्रव्य का प्रयोग सात क्षेत्रों में कहीं पर भी किया जा सकता है। लेकिन इस द्रव्य का उपयोग जन साधारण, अनुकंपा या जीव दया आदि के क्षेत्रों में नहीं हो सकता। . विशेषत: साधर्मिक को धर्म में स्थिर करने, उनके आवश्यकताओं की पूर्ति करने, पौषधशाला, आयंबिल खाता, पाठशाला आदि के जीर्णोद्धार निर्माण एवं रख-रखाव में भी इसका प्रयोग हो सकता है। शंका- साधारण खाते में कौन-कौन से द्रव्य का समावेश होता है? । समाधान- साधारण खाता अर्थात गृहस्थ श्रावक-श्राविका से सम्बन्धित द्रव्य। इसके अंतर्गत साधर्मिक भक्ति का नकरा, पारणा आदि की राशि, दीक्षार्थी, तपस्वी, ब्रह्मचारी, दानवीर आदि के बहमान सम्बन्धी द्रव्य की राशि,
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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