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________________ सात क्षेत्र विषयक विविध पक्षों का समीक्षात्मक अनुशीलन ...343 शंका- देवद्रव्य की राशि श्रावकों को ब्याज पर दे सकते हैं? समाधान- श्रावकों को देवद्रव्य की रकम ब्याज पर देना उचित नहीं है। क्योंकि उस रकम का स्वयं के कार्यों में प्रयोग करने से श्रावक को देवद्रव्य भक्षण का दोष लगता है। कदाच किसी कारणवश ली हो तो सामान्य ब्याज दर (मार्केट रेट) की अपेक्षा अधिक ब्याज देकर समय से पहले उसे चुकाना चाहिए। देवद्रव्य का उपयोग करने से सुपरिणाम बिगड़ते हैं तथा वे दोष के भागी बनते हैं। यदि देवद्रव्य की रकम ब्याज पर रखनी भी हो तो जैनेतर न्याय नीति युक्त सज्जन लोगों के पास रखनी चाहिए। अधिक राशि एक व्यक्ति के पास नहीं रखना चाहिए। जिसे ब्याज में राशि दी जाए उससे सोना आदि गिरवी रख लेना चाहिए जिससे राशि डूबने का प्रसंग न बने। जहाँ तक संभव हो देवद्रव्य का उपयोग तत्सम्बन्धी कार्यों में कर लेना चाहिए। शंका- भगवान के वरघोड़े सम्बन्धी द्रव्य किस खाते में जाता है? समाधान- भगवान के वरघोड़े सम्बन्धी चढ़ावों की राशि देवद्रव्य में जाती है, यह विधान सर्वमान्य है। घोड़े आदि की बोली का द्रव्य रथयात्रा के खर्चे के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है परन्तु किसी भी अन्य कार्य हेतु इसका प्रयोग नहीं होता। शंका- देवद्रव्य या ज्ञानद्रव्य आदि से चिल्लर (छुट्टा पैसा) लिया जा सकता है? समाधान- नोट देकर छुट्टे पैसे लेने में कोई दोष परिलक्षित नहीं होता। उतनी राशि तो देनी ही चाहिए और यदि अधिक दी जाए तो भी लाभ ही है। परन्तु अधिक देने का कोई विधान नहीं है। शंका- आरती और मंगल दीपक की थाली में आए रुपयों पर किसका अधिकार होता है? समाधान- भगवान की आरती, मंगल दीपक आदि में चढ़ाया गया द्रव्य परमात्मा को ही चढ़ाया जाता है अत: वह देवद्रव्य के खाते में ही जमा करना चाहिए। कहीं-कहीं पर आरती का द्रव्य पुजारी को देने का विधान भी देखा जाता है परंतु यह शास्त्रोक्त विधान नहीं है। ऐसे स्थानों में पुजारियों को अन्य रीति से संतुष्ट करने का प्रयास करना चाहिए।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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