SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय-9 सात क्षेत्र विषयक विविध पक्षों का समीक्षात्मक अनुशीलन गृहस्थ जीवन में धर्म का बीजारोपण करने एवं उसे स्थायी रखने के लिए जैनाचार्यों ने अनेक मार्ग बताए हैं। धर्म एवं संघ की उन्नति में भी श्रावक का प्रमुख स्थान होता है। न्याय-नीति पूर्वक अर्जित धन का सत्मार्ग में व्यय करते हुए श्रावक पुण्यानुबंधी पुण्य का उपार्जन तो करता ही है। साथ ही सांसारिक मोह-माया से विरक्त भी होता है। जिनशासन में मुख्य रूप से ऐसे सात क्षेत्र बताए गए हैं जिनमें श्रावक को अपने अर्थ का सदव्यय करना चाहिए। वे सात क्षेत्र हैं- 1. जिन प्रतिमा 2. जिनमंदिर 3. जिन आगम 4. साधु 5. साध्वी 6. श्रावक और 7 श्राविका। गीतार्थ आचार्यों के अनुसार इन सात क्षेत्रों में विवेक पूर्वक धन का प्रयोग करने से वह पुण्य धन कहलाता है तथा उपजाऊ भूमि में बोए गए फल के समान श्रेष्ठ फल प्रदान करता है। _इन सात क्षेत्रों के माध्यम से एकत्रित द्रव्य चार क्षेत्रों में प्रयुक्त किया जाता है और उन चार क्षेत्रों में ही इन सात का समावेश हो जाता है। 1. देवद्रव्य 2. ज्ञानद्रव्य 3. गुरुद्रव्य और 4. साधारण द्रव्य। इसी के साथ जीवदया निश्राकृत द्रव्य, कालकृत द्रव्य, शुभ खाता आदि भी कुछ क्षेत्र हैं जो श्रावकों के सहयोग से ही विकसित होकर सुव्यवस्थित रहते हैं। सर्वप्रथम मन में प्रश्न उठता है कि आखिर यह सात क्षेत्र किसलिए है? इनकी विशेषता क्या है? इनका इतना महत्त्व क्यों है? वस्तुत: ये सात क्षेत्र नदी की सात धाराओं के समान है जो श्रावक के अर्थ को धर्म रूपी समुद्र में ले जाती हैं। ___1.जिनप्रतिमा क्षेत्र- जिनेश्वर परमात्मा की प्रतिमा के उद्देश्य से जिनप्रतिमा निर्माण, जिनपूजा, लेप-ओप, अलंकार निर्माण आदि के निमित्त
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy