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________________ 308... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... इसमें 25 संस्कृत पद्यों के रूप में इक्कीस प्रकारी पूजा का वर्णन किया गया है।68 इसका उल्लेख विंशति स्थानक विचार एवं श्राद्धविधि कौमुदी में प्राप्त होता है। इसमें इक्कीस प्रकार की पूजाओं का निर्देश करते हुए सूत्रकार का कहना है कि यह पूजा देव-दानवों के द्वारा सदाकाल की जाती है। कलिकाल के प्रभाव से कई मनुष्य इसका खण्डन करते हैं अतः भोक्ता की भावना अनुसार इसमें पदार्थों का उपयोग करना चाहिए अतः श्रावक स्व सामर्थ्य एवं श्रद्धानुसार इसमें वर्णित द्रव्यों का प्रयोग करते थे। वे द्रव्य इस प्रकार हैं 1. स्नान 2. विलेपन 3. आभरण 4. पुष्प 5. वास 6. धूप 7. दीप 8. फल 9. अक्षत 10. पान 11. सुपारी 12. नैवेद्य 13. जल 14. वस्त्र 15. चामर 16. छत्र 17. वादिंत्र 18. गीत 19. नाटक 20. स्तुति 21. कोश वृद्धि । यहाँ कोश वृद्धि नामक पूजा देवद्रव्य के विधान का भी सूचन करती है। श्री वर्धमानसूरिकृत धर्मरत्नकरंडक में भी उत्तम पुष्प, नैवेद्य आदि से द्रव्य एवं स्तोत्र पूजा करने का उल्लेख है । उस समय के कई आचार्य पुष्प गंध आदि से अष्टप्रकारी पूजा का भी समर्थन करते हैं। पुटपाक आदि गंधों से पूजा करने वाला जीव रत्नसुन्दर की भाँति शीघ्रमेव सिद्धि को प्राप्त करता है । इसमें विशेष रूप से सुगंधित जल द्वारा अभिषेक करने एवं उत्तम जल से भरे कलश को भगवान के आगे रखने का वर्णन है | 69 चैत्यवंदन महाभाष्य में शान्तिसूरिजी ने पंचोपचारी, अष्टोपचारी एवं सर्वोपचारी पूजा का आख्यान किया है। पुष्प, अक्षत, गन्ध, धूप, और दीपक से पंचोपचारी तथा इसी के साथ फल, नैवेद्य और जल को सम्मिलित करने पर अष्टोपचारी पूजा होती है। ऋद्धि विशेष के योग से पर्वादि में अथवा ऋद्धिमान श्रावक द्वारा नित्य भी सर्वोपचारी पूजा की जाती है। इसमें स्नान, चन्दन आदि से विलेपन तथा नाट्य गीत आदि विविध प्रकार से भक्ति की जाती है। 70 दोघट्टी टीका में भी पुष्प, नैवेद्य और स्तुति से तीन प्रकार की अथवा फल, जल, धूप, अक्षत, वास, कुसुम, नैवेद्य और दीपक इन आठ प्रकार की पूजा का उल्लेख है। 71 कथारत्नकोष में देवभद्रसूरिजी ने पुष्प, धूप, गन्ध, अक्षत, दीपक, ब फल और जलपात्र इन आठ पदार्थों द्वारा जिनपूजा करने का निर्देश किया है। यदि सामर्थ्य न हो तो इनमें से किसी एक प्रकार की पूजा भी परम अभ्युदय का
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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