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________________ 302... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... जाए तो छट्ठ का प्रायश्चित्त आता है । इसी सूत्र में तुंगी, सावत्थी आदि नगरों के श्रावकों की चर्चा करते हुए शंख, शतक, सिलप्पवाल आदि प्रमुख श्रावकों द्वारा पर्व तिथि के दिन पौषध, साधु-साध्वी को सुपात्र दान एवं जिनप्रतिमा की त्रिकाल पूजा करने का उल्लेख है । यह कृत्य करने वाला श्रावक ही सम्यग्दृष्टि होता है 39 आगमिक साहित्य में ऐसे अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं जिनसे जिनपूजा एवं जिनप्रतिमा की शाश्वतता स्वयं सिद्ध हो जाती है। इसी के साथ वर्तमान में जिनपूजा एवं जिनमूर्ति से सम्बन्धित जो शंकाएँ एवं तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं उनका भी समाधान हो जाता है। जहाँ तक आगमिक व्याख्या साहित्य का प्रश्न है उनमें अनेक स्थानों पर इस विषयक चर्चा दृष्टिगत होती है। आचारांग नियुक्ति में शाश्वत तीर्थ - अशाश्वत तीर्थ, आचार्य आदि के सम्मुख जाने, उनका सत्कार आदि करने को सम्यक्त्व निर्मलीकरण का हेतु बताया गया है। 40 श्री सूत्रकृतांग सूत्र की नियुक्ति में आर्द्रकुमार को जिनप्रतिमा देखकर जातिस्मरण ज्ञान हुआ इसकी चर्चा है। साथ ही अभयकुमार द्वारा भेजी गई जिनप्रतिमा से प्रतिबोधित होकर जब तक दीक्षा ग्रहण नहीं की तब तक हर दिन जिनपूजा करने का भी उल्लेख है। 41 श्रीकल्पसूत्र की स्थिविरावली टीका के अनुसार दशवैकालिक सूत्र रचियता शय्यंभवसूरि भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा के दर्शन से प्रतिबोधित हुए थे |142 द्वीपसागर प्रकीर्णक ै एवं हरिभद्रसूरिकृत आवश्यक टीका के अनुसार जिनप्रतिमा के आकार की मछलियाँ समुद्र में होती हैं। जिन्हें देखकर अनेक भव्य मछलियों को जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त होता है और बारह व्रत धारण कर वे सम्यक्त्व सहित आठवें देवलोक में जाती हैं। इसी प्रकार तिर्यंच पशु-पक्षियों को भी जिनप्रतिमा के आकार मात्र के दर्शन से अनुपम लाभ की प्राप्ति होती है फिर तो फिर मनुष्य को लाभ होने के विषय में कैसे शंका हो सकती है? गौतम स्वामी की मोक्ष प्राप्ति सम्बन्धी शंका का निवारण करते हुए आवश्यक नियुक्ति में कहा गया है कि जो व्यक्ति आत्मलब्धि से श्री अष्टापद तीर्थ की यात्रा करते हुए वहाँ भावपूर्वक पूजा स्तवना करता है वह उसी भव में मोक्ष प्राप्त करता है। 44
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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