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________________ 300... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... प्रथम उपांग श्री औपपातिकसूत्र में चम्पानगर में स्थित अनेकशः सुन्दर जिनालयों का वर्णन किया गया है।14 इसी प्रकार अन्य नगरों में भी मन्दिरों का बहुतायत में उल्लेख है। इससे सिद्ध होता है कि आगम काल में इन नगरों की गली-गली में जिनमन्दिर थे। इसी सत्र में अम्बड श्रावक एवं उनके 700 शिष्यों का वर्णन करते हुए अन्य तीर्थों द्वारा गृहीत जिन प्रतिमा को अवन्दनीय कहा गया है, परन्तु अरिहंत एवं अरिहंत प्रतिमाओं को वन्दनीय माना है।15 श्री राजप्रश्नीय सूत्र में जिनप्रतिमा एवं जिनपूजा सम्बन्धी विशद वर्णन प्राप्त होता है। सूर्याभ देवता द्वारा स्वनिकाय में रहे हुए शाश्वत जिनबिम्बों की पूजा का इसमें विस्तृत विवेचन है।16 इसी उपांग सूत्र में गुणवर्मा राजा के सत्रह पुत्रों द्वारा सत्रह-सत्रह प्रकार की पूजा करने एवं मोक्ष जाने का वर्णन है।17 इसी के साथ इसमें प्रदेशी राजा एवं उनके सारथी द्वारा किए गए जिन प्रतिमा पूजन का भी उल्लेख है।18 श्री जीवाभिगम सूत्र में विजय देव एवं उसके सहयोगी देवों द्वारा सत्रहभेदी पूजा करने का वर्णन है।19 श्री जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में यमक आदि देवों के द्वारा 269 शाश्वत पर्वतों पर स्थित मन्दिरों में जिनपूजा करने का वर्णन उपलब्ध होता है।20 श्री चन्द्रप्रज्ञप्ति एवं सूर्यप्रज्ञप्ति में चन्द्र एवं सूर्य विमान में जिनप्रतिमा का वर्णन है।21 श्री निरयावलिका सूत्र में 19 से 23 तक के नगरादि अधिकार में जिन प्रतिमा का उल्लेख है।22 श्री कल्पसूत्र में अनेक स्थानों पर जिन पूजा एवं जिन प्रतिमा का वर्णन मिलता है। सिद्धार्थ राजा के द्वारा की गई द्रव्य पूजा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि सिद्धार्थ राजा दस दिन तक महोत्सव के रूप में कुल मर्यादा का पालन करते हैं। हजार अथवा लाख द्रव्य लगे ऐसे अरिहंत भगवान की प्रतिमा की पूजा करते हैं, औरों से करवाते हैं तथा बधाई को स्वयं ग्रहण करते हैं एवं सेवकों द्वारा ग्रहण करवाते हैं।23 __ श्री उत्तराध्ययन सूत्र24 के दसवें अध्ययन में गौतमस्वामी द्वारा स्वलब्धि से अष्टापद तीर्थ की यात्रा करने का वर्णन है। इसी के अठारहवें अध्ययन में
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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