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________________ जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...281 की विभिन्न सभ्यताओं में यह सर्वाधिक प्राचीन एवं श्रेष्ठ चिह्न के रूप में मान्य है। स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक एवं जीवन में स्वस्ति भाव का प्रेरक माना गया है। जैन दर्शन में इसे चार गति का सूचक मानते हैं। इसी के साथ यह विकास, सफलता एवं सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। धार्मिक एवं मांगलिक अनुष्ठानों में मंगलकारक के रूप में इसका आलेखन विशेष रूप से किया जाता है। यह वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को अभिव्यक्त करता है। इसकी चार रेखाओं को अरिहंत, सिद्ध, साधु और केवलि प्ररूपित धर्म का प्रतीक भी माना जाता है। पूजाविधि करते हुए अक्षतपूजा के अन्तर्गत स्वस्तिक का आलेखन किया जाता है। सुपार्श्वनाथ भगवान का लंछन भी स्वस्तिक ही है। अन्य संप्रदायों में स्वस्तिक की महत्ता देवपूजन, विवाह, व्यापार, शिक्षारंभ, मुंडन संस्कार आदि में स्वस्तिक आलेखन आवश्यक माना गया है। स्वस्तिक की दो रेखाओं को पुरुष और प्रकृति का प्रतीक माना गया है। भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को विष्णु, सूर्य, सृष्टि, चक्र तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतीक माना जाता है। कुछ विद्वान इसे गणेश का प्रतीक मानते हुए परम वंदनीय मानते हैं। पुराणों में इसे सुदर्शन चक्र का प्रतीक माना गया है। कुछ विद्वान इसकी चार भुजाओं को चार वर्णों का प्रतीक मानते हैं। एक पारम्परिक मान्यता अनुसार स्वस्तिक व्रत करने से महिलाओं को वैधव्य का भय नहीं रहता। बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध की प्राचीन प्रतिमाओं पर स्वस्तिक का आलेखन मिलता है। चीन में स्वस्तिक को सुख और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, वहीं तिब्बत में मृतकों के पास स्वस्तिक चिह्न रखने की परम्परा है। . आधुनिक काल में जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने स्वस्तिक को जर्मनी का राष्ट्रचिह्न बनाया। उसके अनुसार स्वस्तिक एक प्राचीन आर्य प्रतीक हैं, जो समृद्धि और विजय प्रदान करता है। दक्षिणावर्त स्वस्तिक को शुभ और प्रगति का सूचक माना जाता है वहीं वामावर्त स्वस्तिक को अशुभ माना जाता है। कुछ चिंतकों के अनुसार वामावर्त या उल्टा स्वस्तिक रक्षक होता है। इस विषय में लोकोक्ति है कि हिटलर के ध्वज में उल्टा स्वस्तिक होने से उसकी पराजय हुई। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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