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________________ जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...277 ये मुद्राएँ तत्सम्बन्धी क्रियाओं के हेतुओं को लक्ष्य में रखकर सूचित की गई है। अत: उनकी परिणाम सिद्धि में भी सहायक बनती है। क्रिया में अधिक तल्लीनता आती है एवं भावों का जुड़ाव होता है। विशिष्ट क्रियाओं के संबंध में अर्थ पूर्ण मुद्राओं का प्रयोग करने से अज्ञेय व्यक्ति भी उसे देखकर समझ-सीख सकता है। इस प्रकार मुद्रा प्रयोग के पीछे अनेक रहस्यपूर्ण तथ्य रहे हुए हैं और इसीलिए गीतार्थ आचार्यों ने क्रिया अनुष्ठानों में मुद्राओं का निर्देश किया है। प्रश्न- व्यवहार में कई बार लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि हम तुम्हारा पल्लू या चरण पकड़ कर तिर जाएंगे? क्या किसी एक की धर्म क्रिया का फल किसी दूसरे को मिल सकता है? समाधान- धार्मिक क्रिया हो या सामान्य क्रिया, जो क्रिया जिसके द्वारा की जाती है उसके परिणाम उसी को प्राप्त होते हैं। माता, पिता, पत्नी, परिवार या मित्र की क्रिया कभी भी हमें लाभान्वित नहीं कर सकती। वाल्मीकि ऋषि जो कि पहले लूटेरे थे। उन्हें जब इस सत्य का ज्ञान हुआ कि जिस परिवार के लिए मैं इतनी पाप क्रियाएँ कर रहा हूँ उसके दुखमय परिणाम भोगने के समय कोई मेरा साथ नहीं देने वाला। दूसरों की बात छोड़िए हमारे खुद के शरीर में हम अपने एक अंग की पीड़ा दूसरे अंग में नहीं भोग सकते। तो फिर किसी अन्य के द्वारा किए हुए धार्मिक कार्य या सद्कार्यों का परिणाम हमें कैसे प्राप्त हो सकता है, जब हमारा उसमें कोई योगदान ही न हो। ____ हम खाना खाएंगे तो पेट हमारा भरेगा। प्यास हमें लगी है तो पानी भी हमें ही पीना होगा, किसी अन्य के द्वारा दस ग्लास पानी पीने पर भी हमारी प्यास नहीं बुझ सकती। यदि सही परिणाम प्राप्त करने हैं तो पुरुषार्थ हमें ही करना होगा। हम पढ़ेंगे तो हमारा ज्ञान बढ़ेगा, हम खाएंगे तो हमारी भूख मिटेगी और इसी तरह हम धर्म क्रिया करेंगे तो हमें उसके उत्तम परिणामों की प्राप्ति होगी। इसीलिए धार्मिक कार्य व्यक्तिगत स्तर पर करने चाहिए। पूर्व विवेचन से यह स्पष्ट है कि जब हम स्वयं परमात्मा की पूजा करेंगे तभी तत्सम्बन्धी आनंद की अनुभूति हमें हो सकती है। पूजा आदि अनुष्ठानों के द्वारा ही मानसिक शांति, शारीरिक स्फूर्ति एवं आन्तरिक प्रसन्नता का संचार हो सकता है तथा शुभ संस्कारों का जागरण एवं स्थिरीकरण हो सकता है।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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