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________________ 250... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... जिस प्रकार डॉक्टर की दवा दिन में तीन बार लेने पर शीघ्र आराम मिलता है, वैसे ही आत्मा में लगे हुए विभाव दशा रूपी रोगों का निवारण करने एवं आत्मा की Battery Charge करने हेतु जिनेश्वर परमात्मा की त्रिकाल पूजा रामवाण औषधि का कार्य करती है। त्रिकाल पूजा शब्द स्वयं ही सूचित करता है कि यह पूजा तीनों कालों में की जाती है। विशेष रूप से संधि वेला अर्थात दो कालों के बीच का Common या उन्हें जोड़ने वाला समय। सूर्योदय, सूर्यास्त एवं दोपहर में मध्याह्न का समय संधि वेला माना गया है। इन संध्याओं की महत्ता प्राय: सभी धर्मों में रही हुई है। जैनाचार्यों ने भी लोक व्यवहार एवं संधि समय की महत्ता को देखते हुए त्रिकाल पूजा का विधान किया है। त्रिकाल पूजा की समय सारणी जैनाचार्यों के अनुसार भगवान की त्रिकाल पूजा 1. प्रात:काल 2. मध्याह्नकाल और 3. सायंकाल में करनी चाहिए। प्रथम पूजा सुबह में सूर्योदय के बाद, द्वितीय मध्याह्नकालीन पूजा दोपहर में लगभग बारह बजे तथा तृतीय संध्याकालीन पूजा सूर्यास्त के कुछ समय पूर्व करनी चाहिए। - त्रिकाल पूजा करते हुए प्रात:काल में विशेष रूप से परमात्मा की वासक्षेप पूजा, मध्याह्न काल में परमात्मा की अष्टप्रकारी पूजा एवं संध्या काल में परमात्मा की आरती, मंगल दीपक आदि के द्वारा पूजा की जाती है। प्रातःकालीन पूजा का स्वरूप एवं वासक्षेप पूजा के विचारणीय तथ्य श्रावक के प्रात:कालीन चर्या की चर्चा करते हुए शास्त्रकारों ने श्रावकों के लिए सूर्योदय से डेढ़ घंटा पूर्व उठने का सूचन किया है। तदनन्तर सामायिक, रात्रि प्रतिक्रमण आदि क्रिया करनी चाहिए। सूर्योदय के पश्चात हाथ-पैर की शुद्धि करके शुद्ध वस्त्र धारण कर जिन मन्दिर जाना चाहिए। दस त्रिक एवं पाँच अभिगम का पालन करते हुए जिन मन्दिर में प्रवेश करना चाहिए। परमात्मा की प्रदक्षिणा, स्तुति आदि करने के बाद सुगन्धित चंदन चूर्ण से परमात्मा की वासक्षेप पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात धूप-दीप आदि करके यथाशक्ति पच्चक्खाण ग्रहण करना चाहिए।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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